Saturday, August 16, 2014

ऐसा तिरंगा जो फहराने के बाद आज तक उतारा नहीं गया

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तिरंगे का नाम जुबां पर आते ही देश भक्ती की भावनाएं जग उठती हैं। इस तिरंगे के लिए न जाने कितने भारतीय रणबाकुरों ने अपने जान न्योछावर कर दिए। सरहद पर मर मिटने वाले अनगिनत जवानों की बदौलत ही आज पूरे भारत में गर्व से तिरंगा लहरा रहा है। तिरंगे की शान ऐसी कि हर साल 15 अगस्त को पूरा भारत तिरंगे के रंगो में रंग जाता है। स्वतंत्रता दिवस के मौके पर हम आपको बता रहे हैं भारत के ऐसे तिरंगे के बारे में जिसे सबसे पहले रात और दिन यानी की 24 घंटे तक फहराए जाने का गौरव प्राप्त हुआ।

दरअसल दिसंबर 2009 में सरकार ने राष्ट्रीय ध्वज को रात में भी फहराने की अनुमति दी थी। इसके बाद 24 अक्टूबर 2011 को सबसे पहले जयपुर के सेंट्रल पार्क में 206 फीट लंबे पोल
पर (72×48 फुट आकार का) तिरंगा फहराया गया। यह पहला तिरंगा है जो कभी पोल से उतारा नहीं गया है चाहे दिन हो या रात। 2011 तक यह तिरंगा भारत का सबसे ऊंचा तिरंगा झंडा था। अब दिल्ली के कनॉट प्लेस में लहराने वाला तिरंगा देश का सबसे ऊंचा झंडा है जिसके पोल की लंबाई 207 फीट है।  
जयपुर के सेट्रल पार्क में लहराने वाले 206 फीट के इस तिरंगे की कुछ खास बातें:
  • इस झंडे का वजन 48.5 किलो है।
  • 72×48 फुट के आकार वाला यह तिरंगा पॉलीएस्टर कपड़े से बना हुआ है।
  • इसे मुम्बई की फ्लैग शॉप द्वारा तैयार किया गया है।
  • इसे बनाने में 48 हजार 500 रुपए लगे थे।
  • जिस पोल-स्टेण्ड पर यह तिरंगा खड़ा है उसे बनाने में उसमें लगे मशीन को तैयार करने में कुल 48 लाख रुपए लगे। यह पोल हाईटेंशन स्टील से निर्मित है। इस पोल की नीचे की चौड़ाई 5.5 फीट है तथा ऊपर जाकर इसकी चौड़ाई 2.5 फीट रह जाती है।
  • इसे नियमित फहराने से पहले जांच की जाती है और झंडे के फटने पर ही मरम्मत के लिए उतारा जाता है।
  • इस तिरंगे के चारो तरफ झंडे का विवरण, रोचक तथ्य और नियमों को सुंदर ढ़ंग से लिखा गया है। 
दिसंबर 2009 में सरकार ने राष्ट्रीय ध्वज को रात में भी फहराने की अनुमति दी: भारत के जानेमाने उद्योगपति नवीन जिंदल ने जून 2009 में केंद्रीय गृह मंत्रालय को पत्र लिखकर यह प्रस्ताव रखा था कि देश में रात को भी विशाल ध्वज दंड पर राष्ट्रीय ध्वज यानी तिरंगा फहराने की अनुमति दी जाए। गृह मंत्रालय ने उनके प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए कहा कि जिंदल को देश में राष्ट्रीय ध्वज रात को भी विशाल ध्वज दंड पर फहराने के लिए अनुमति दी जाती है। 
42वें नंबर पर है कोटा का 206 फीट का ध्वज: ऊंचे ध्वजों में राजस्थान के कोटा का ध्वज स्मारक 42वें नम्बर पर है तथा 206 फीट तक के ऊंचाई वाला यह 11वां ध्वज है। इसे पहली बार फहराने में 7 मिनट का समय लगा था। 
भारत के कई शहरों में हैं 206 फीट ऊंचे ध्वज: फ्लैग फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष नवीन जिंदल के अनुसार, फाउंडेशन की ओर से ब्रह्मसरोवर (कुरुक्षेत्र), लाडवा, हिसार, सोनीपत, कैथल (हरियाणा), अंगुल (उड़ीसा), नेशनल मिलिटरी म्यूजियम (बेंगलुरु) और जिंदल स्टील एंड पॉवर लिमिटेड विजयनगर (कर्नाटक) में दो सौ छह फुट ऊंचे ध्वज स्तंभ स्थापित किए जा चुके हैं। 
देश का सबसे ऊँचा तिरंगा: भारतीय उद्योगपति नवीन जिंदल ने 60 फुट चौड़े और 90 फुट लंबे तिरंगे को 10 मार्च 2014 को दिल्ली के कनॉट प्लेस में 207 फुट ऊंचे पोल पर फहराया। देश के सबसे बड़े इस झंडे का वजन 35 किलोग्राम है। फ्लैग फाउंडेशन द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में जिंदल ने कहा, ‘मैंने भारत का सबसे बड़ा झंडा फहराने का सपना देखा था। सरकारी विभागों से अनुमति मिलने में देरी के कारण सात साल बाद यह सपना पूरा हुआ।’ यह झंडा दिल्ली के कनॉट प्लेस के सेंट्रल पार्क में स्थापित किया। 
देश में केवल तीन किलों पर 21 फीट लंबा और 14 फीट चौड़ा झंडा फहराया जाता है: पूरे देश में केवल तीन किलों के ऊपर 21 फीट लंबाई और 14 फीट चौड़ाई के झंडे फहराए जाते हैं। मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले में स्थित किला उनमें से एक है। इसके साथ कर्नाटक के नार गुंड किले और महाराष्ट्र के पनहाला किले पर ये झंडे फहराए जाते हैं। 
शहीदों के शवों पर तिरंगे का लपेटना: देश पर प्राण न्योछावर करने वाले भारतीय रणबांकुरों के शवों पर एवं राष्ट्र की महान विभूतियों के शवों पर भी उनकी शहादत को सम्मान देने के लिए ध्वज को लपेटा जाता है। इस दौरान केसरिया पट्टी सिर तरफ एवं हरी पट्टी पैरों की तरफ होना चाहिए, न कि सिर से लेकर पैर तक सफेद पट्टी चक्र सहित आए और केसरिया और हरी पट्टी दाएं-बाएं हों। शहीद या विशिष्ट व्यक्ति के शव के साथ ध्वज को जलाया या दफनाया नहीं जाता, बल्कि मुखाग्नि क्रिया से पूर्व या कब्र में शरीर रखने से पूर्व ध्वज को हटा लिया जाता है। 
तिरंगे को कब झुकाया जाता है: भारतीय संविधान के अनुसार तिरंगे को 15 अगस्त, 26 जनवरी के अवसर पर या किसी राष्ट्र विभूति का निधन होता है तथा राष्ट्रीय शोक घोषित होता है, तब कुछ समय के लिए ध्वज को झुका दिया जाता है। लेकिन सिर्फ उसी भवन का तिरंगा झुका रहेगा जिस भवन में उस राष्ट्र विभूति का पार्थिव शरीर रखा जाता है। जैसे ही उस राष्ट्र विभूति का पार्थिव शरीर अंत्येष्टि के लिए बाहर निकाला जाता है, वैसे ही ध्वज को पूरी ऊंचाई तक फहरा दिया जाता है। 
तिरंगे से जुड़ी कुछ रोचक तथ्य:
  • संसद भवन देश का एक मात्र ऐसा भवन है जिस पर एक साथ तीन तिरंगे फहराए जाते हैं।
  • राष्ट्रपति भवन के संग्रहालय में एक ऐसा लघु तिरंगा है जिसे सोने के स्तंभ पर हीरे-जवाहरातों से जड़ कर बनाया गया है।
  • 15 अगस्त और 26 जनवरी के दिन प्रधानमंत्री राजपथ व लालकिले पर जो तिरंगा फहराते हैं, वह रेशमी खादी का होता है न कि सूती खादी का जिसे वर्ष के अन्य दिनों में प्राय: भवनों पर फहराया जाता है।
  • माउण्ट ऐवरेस्ट पर पहली बार तिरंगे को यूनियन जैक तथा नेपाली राष्ट्रीय ध्वज के साथ 29 मई 1953 को फहराया गया, जब शेरपा तेनजिंग और एडमण्ड हिलैरी ने माउण्ट ऐवरेस्ट पर विजय प्राप्त की।
  • 21 अप्रैल 1996 को स्क्वाड्रन लीडर संजय थापर ने एम. आई.-8 हैलीकॉप्टर से 10000 फीट की ऊंचाई से कूद कर पहली बार तिरंगा उत्तरी ध्रुव पर फहराया।


साभार: भास्कर समाचार
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