Sunday, August 24, 2014

दस आविष्कार जो बिना सोचे समझे ही हो गए



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ऐसा कहा जाता है कि ‘आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है’, लेकिन कुछ वैज्ञानिकों ने इसे गलत साबित किया है। उन्होंने कुछ ऐसे आविष्कार किए जो उनकी प्राथमिकता में थे ही नहीं। भूलवश आविष्कार होते चले गए। वो बनाना कुछ चाहते थे, लेकिन बन कुछ और गया। क्या आपको पता है कि आलू चिप्स, जो हम बड़े शौक से खाते हैं, जिसे खाए बिना हमारा दिन नहीं बीतता, उसे पहली बार एक शेफ ने कस्टमर की फरमाइश से परेशान होकर गुस्से में बनाया था। गुस्से और बेमन से बनाई हुई डिश ज्यादातर खराब और बेस्वाद ही होती है, लेकिन कस्टमर को ये चिप्स बहुत पसंद आया। है न ये कमाल की बात। इसी तरह ऐसे कई आविष्कार हैं जो किसी गलती की वजह से होते चले गए। आज हम आपको 10 ऐसे आविष्कारों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनके
इन्वेंशन की कहानी सुनकर आप भी आश्चर्यचकित रह जाएंगे: 
पोटैटो चिप्स: जॉर्ज क्रम,  न्यूयॉर्क के सैराटोगा स्प्रिंग के पास मूनलेक हाउस रेस्टोरेंट के मशहूर शेफ ने अविष्कार किया। पोटैटो चिप्स स्नैक्स के रूप में सबको पसंद आते हैं। इसे बनाने की पीछे की कहानी और भी दिलचस्प है। एक कस्टमर बार-बार जॉर्ज क्रम द्वारा बनाए हुए फ्राइ पोटैटो को यह कहकर वापस कर देता कि ये ड्राय और क्रंची नहीं हैं। इससे तंग आकर जॉर्ज ने आलू को बिल्कुल पतले आकार में काटकर गर्म ग्रीस में फ्राय किया और फिर उसमें नमक डालकर सर्व किया। जॉर्ज की उम्मीदों से बिल्कुल उलट उस कस्टमर की यह डिश बहुत पसंद आई और तबसे लेकर आजतक चिप्स कई फ्लेवर में लोगों की पसंद बने हुए हैं। 
फायरवर्क (आतिशबाजी): आविष्कारक- चीन का अज्ञात कुक। दिवाली, न्यू ईयर और किसी बड़े फंक्शन में आसमान में आतिशबाजी की जाती है। आतिशबाजी के बिना भारत में शादी में धूम-धमाका अधूरा माना जाता है, लेकिन क्या आपको पता है कि आतिशबाजी असल में एक चाइनीज़ कुक के दिमाग की उपज थी। इसे चीन में आज से लगभग 2000 साल पहले बनाया गया था। एक कुक अपनी किचन में कुछ एक्सपेरिमेंट कर रहा था। उसने चारकोल, सल्फर और साल्टपेटर (पोटेशियम नाइट्रेट) को एक साथ मिलाया और बांस की नली में डाल दिया। उस समय ये चीजें आसानी में किचन में उपलब्ध हो जाती थीं। बांस की नली में मिक्सचर को डालते ही एक विस्फोट हुआ और वहां से फायरवर्क का आविष्कार हुआ। इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि विस्फोट के बाद वो कुक बच पाया या नहीं। 
पोस्ट इट नोट्स: आविष्कारक- स्पेंसर सिल्वर, 3 M प्रयोगशाला में एक रिसर्चर। पोस्ट इट नोट कागज का एक छोटा भाग होता है, जिसके बैक साइड पर एक चिपकने वाली स्ट्रिप लगी होती है। इस पर कोई ज़रूरी काम या नोटिस लिखकर अस्थायी रूप से दीवार, कम्प्यूटर के मॉनिटर या डेस्क पर लगाया जाता है, ताकि वो काम ध्यान में रहे और समय से किया जा सके। 1968 में स्पेंसर सिल्वर नाम के रिसर्चर एक बार 3 M प्रयोगशाला में काम कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने एक चिपकने वाला पदार्थ का निर्माण किया, लेकिन इसके परीक्षण में यह पाया गया कि इसकी चिपकने की शक्ति बेहद कम है। इससे किसी कागज को चिपकाने पर वह चिपक तो जाता है, लेकिन खींचने पर आसानी से निकल भी जाता है, वो भी बिना निशान छोड़े। इसके कुछ सालों बाद सिल्वर के ही साथी अमेरिकन वैज्ञानिक आर्थर फ्राइ ने 1974 में इसे इस्तेमाल करने की तरकीब निकाली। उन्होंने चर्च में पढ़ी जाने वाली किताब में बुकमार्क बनाने के लिए पेपर पर उस चिपकने वाले पदार्थ को लगाया और इस तरह पोस्ट इट नोट्स का आविष्कार हुआ। 
माइक्रोवेव ओवन: आविष्कारक- पर्सी स्पेनसर, रेथियान कॉरपोरेशन में इंजीनियर। माइक्रोवेव ने आजकल होम एप्लायंसेस में अपनी महत्वपूर्ण जगह बना ली है। 1945 में पर्सी स्पेनसर रेथियान कॉरपोरेशन के लिए रिसर्च करते समय मैग्नेट्रॉन नामक एक नई वैक्यूम ट्यूब के साथ प्रयोग कर रहे थे। तभी अचानक उनकी जेब में रखी कैंडी बार पिघलने लगी। यह देखकर पर्सी आश्चर्य में पड़ गए। इसके बाद उन्होंने दूसरा प्रयोग पॉपकॉर्न के साथ किया। जब इस बार पॉपकार्न भी फूटने लगे तो उन्होंने इस प्रक्रिया को नोटिस किया। इसके बाद 1947 में रेथियान ने अपना पहला माइक्रोवेव ओवन का निर्माण किया, जिसका वजन 750 पाउंड था। यह ओवन 51/2 फीट लंबा था और इसकी कीमत करीब 5,000 डॉलर थी। साल 1950 से घरों के लिए भी ओवन का निर्माण किया जाने लगा, लेकिन बड़े आकार और काफी महंगे होने की वजह से इसकी पॉपुलैरिटी ज्यादा नहीं हो पाई। साल 1967 से यह छोटे आकार और कम बजट में आने लगा। 
कॉर्न फ्लेक्स: आविष्कारक- जॉन कैलॉग और विल कीथ कैलॉग। 1894 में डॉ. जॉन कैलॉग मिशिगन के बैटल क्रीक सैनिटोरियम में सुपरिन्टेंडेंट थे। एक बार वो और उनके भाई विल कीथ कैलॉग सात दिनों के एक क्रिश्चियन आंदोलन एडवेन्टिज्म में प्रतिभागी बने। इस दौरान उन्हें सैनिटोरियम के मरीजों के साथ-साथ आंदोलनकारियों के लिए भी शुद्ध शाकाहारी उपलब्ध कराना होता था। शाकाहारी खाना बनाने के एक्सपेरिमेंट में ही कॉर्न फ्लेक्स का निर्माण हुआ। हुआ यूं कि एक बार उन्होंने गेहूं को उबालने के लिए छोड़ दिया और बाहर चले गए। काफी देर बाद जब उन्हें याद आया, तब वे दौड़कर अंदर गए तो देखा पूरे गेहूं में खमीर पड़ने लगा है। कैलॉग बंधुओं ने इसे फेंकने के बजाय रोलर से रोल किया, जिससे आटे की लंबी शीट बन सके। लेकिन लंबी शीट की जगह वो छोटे-छोटे टुकड़ों में बदल गया। इसके बाद उन्होंने इसे सेंक कर मरीजों को खिलाया, जिसे सभी ने बेहद पसंद किया। कैलॉग बंधुओं ने इसे ग्रैनोज  नाम दिया। इसके बाद उन्होंने इसी तरह दूसरे अनाज जैसे मक्के के साथ भी प्रयोग किया और 1906 में विल कीथ कैलॉग खुद की कंपनी कैलॉग बनाई, जहां पर कॉर्न फ्लेक्स बनाकर बेचे जाते थे। बाद में उनके भाई जॉन ने नैतिक आधार पर कंपनी छोड़ दी, क्योंकि विल उसमें चीनी मिलाकर क्वालिटी को निम्न स्तर पर पहुंचा रहे थे। 
सिली पुट्टी: जेम्स राइट, इलेक्ट्रिक इंजीनियर। सिली पुट्टी सिलिकॉन बेस्ड प्लास्टिक क्ले होता है जो बच्चों के खिलौनों में इस्तेमाल होता है। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान संयु्क्त राज्य अमेरिका सरकार को सैनिकों के जूते और हवाई जहाज के टायर बनाने के लिए रबर की ज़रूरत थी। तब इंजीनियर जेम्स राइट ने सिलिकॉन से रबर का विकल्प बनाने की कोशिश की। इसके लिए राइट ने बोरिक एसिड की कुछ बूंदें सिलिकॉन ऑयल में डालीं। इसके परिणामस्वरूप एक उछाल वाली पॉलीमराइज़्ड वस्तु का निर्माण हुआ। इस प्रोडक्ट को इस्तेमाल के लिए लाने में काफी वक्त लग गया। 1950 में मार्केटिंग एक्सपर्ट पीटर हॉगसन ने इस पदार्थ को खिलौने के रूप में इस्तेमाल किया और इसे सिली पुट्टी नाम दिया। तब से लेकर आजतक सिली पु्ट्टी का इस्तेमाल सिर्फ खिलौने के रूप में नहीं, बल्कि गंदगी साफ करने, फर्नीचर को स्थिर करने, स्ट्रेस रिडक्शन और फिजिकल थेरेपी के रूप में भी किया जाता है। 
स्लिंकी: आविष्कारक- रिचर्ड जेम्स, एक नौसेना इंजीनियर। स्लिंकी एक प्रकार का खिलौना होता है, जिसमें स्प्रिंग लगी होती है। सन 1943 में ब्रिटेन के नौसैनिक इंजीनियर रिचर्ड जेम्स जहाज पर सेंसिटिव उपकरणों को सपोर्ट देने और स्थिर रखने के लिए एक प्रकार की स्प्रिंग का निर्माण कर रहे थे। अचानक एक स्प्रिंग सेल्फ से गिर गई। गिरने के बाद जमीन पर वह एक जगह से दूसरी जगह उछलती जा रही थी। तभी रिचर्ड को एक तरकीब सूझी और उन्होंने खिलौने बनाने के लिए उस स्प्रिंग का इस्तेमाल किया। उनकी पत्नी ने इस बाउंसी खिलौने को स्लिंकी नाम दिया। इस तरह 1945 में जेम्स ने 90 मिनट में 400  बाउंसी खिलौने (स्लिंकी) बेचकर इतिहास रच दिया और तभी से लोग स्लिंकी खिलौने से रूबरू हुए। आज भी दुनियाभर में लगभग 25 करोड़ से भी ज़्यादा स्लिंकी ट्वॉयज बिकते हैं। 
पेंसिलिन: आविष्कारक- सर एलेक्ज़ेडर फ्लेमिंग, वैज्ञानिक। पेंसिलिन एक एंटी-बायोटिक्स ग्रुप ड्रग है जो पेंसिलियम कवक से बनता है। इसमें पेंसिलिन जी, पेंसिलिन वी, प्रोकेन पेंसिलिन और बेंजाथाइन पेंसिलिन मौजूद होते हैं। यह पहली ऐसी दवा है जिससे कई गंभीर बीमारियों का इलाज किया जा पाना संभव हुआ। इसके आविष्कार से जुड़ी एक दिलचस्प कहानी है। एक बार सर फ्लेमिंग अपने वर्कस्टेशन में गंदी प्लेटों के ढेर को छोड़ कहीं बाहर घूमने चले गए। 3 सितंबर 1928 को जब वो वापस आए तो उन्होंने नोटिस किया कि जो गंदे बर्तन थे, उसमें चारों ओर बैक्टीरिया पनप गए थे। उन्होंने सभी बर्तन को एक लाइज़ोल के टैंक में डाल दिया। तभी उन्होंने एक ऐसी प्लेट उठाई जिसमें staphylococcus नामक बैक्टीरिया लगा हुआ था। उन्हें उस प्लेट में कुछ अजीब हलचल दिखी। डिश पर बैक्टीरिया की हर जगह भरमार थी, सिवाय एक जगह के जहां फफूंद का एक छत्ता बन गया था। इस फफूंद के छत्ते के चारों ओर एक ऐसा एरिया था, जहां बैक्टीरिया नहीं थे। ऐसा लगता था कि फफूंद ने बैक्टीरिया को फैलने से रोक दिया है। फ्लेमिंग ने इसे नोटिस किया और फिर उन्होंने उससे बैक्टीरिया को मारने के प्रयोग किए। इस तरह पेंसिलिन की खोज हुई। 
सेकेरिन (आर्टिफिशियल स्वीटनर): आविष्कारक- कॉन्सटेंटाइन फालबर्ग, जॉन्स होपकिन्स यूनिवर्सिटी में रिसर्चर। सेकेरिन को आर्टिफिशियल स्वीटनर कहते हैं। इसमें फूड एनर्जी बिल्कुल नहीं होती है। इसका इस्तेमाल डाइट ड्रिंक्स, कैंडी, कूकीज़, मेडिसिन और टूथपेस्ट में मिठास लाने के लिए किया जाता है। एक बार 1879 में रिसर्चर कॉन्सटेंटाइन फालबर्ग यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर इरा रेमसेन की प्रयोगशाला में काम कर रहे थे। प्रयोगशाला में काम करने के बाद वो लंच के लिए गए, लेकिन हाथ धोना भूल गए। जब वो ब्रेड खा रहे थे, उन्हें वो मीठी लग रही थी। इसकी वजह उनके हाथ में लगा केमिकल था। फिर 1880 में इन दोनों साइंटिस्ट्स ने इस डिस्कवरी को पहली बार दुनिया के सामने रखा, लेकिन साल 1884 में फालबर्ग ने रेमसेन से अलग होकर खुद से सेकेरिन का निर्माण किया और उस पर पूर्ण रूप से अपना अधिकार प्राप्त किया। 
पेसमेकर: आविष्कारक- विलसन ग्रेटबैच। 1956 में ग्रेटबैच यूनिवर्सिटी ऑफ बुफैलो में दिल की धड़कनों को रिकॉर्ड करने वाली एक डिवाइस पर काम कर रहे थे। उन्होंने एक बॉक्स से ग़लत साइज़ का प्रतिरोधक निकाल कर सर्किट में उसे इन्स्टाल किया। इससे उन्होंने मानव हृदय की धड़कनों की रिदम को सुना और इस बारे में ग्रेटबैच ने दूसरे साइंटिस्ट्स के साथ भी चर्चा की कि इलेक्ट्रिकल स्टिमुलेशन द्वारा हार्ट की नेचुरल बीट्स में अगर कोई बाधा पैदा होती है, तो उसे ठीक किया जा सकता है। इससे पहले पेसमेकर काफी भारी-भरकम मशीन के आकार में होते थे। ग्रेटबैच के इस विकसित डिवाइस का आकार सिर्फ 2 इंच ही था। इस तरह से स्वास्थ्य जगत में इस आविष्कार से दिल के मरीजों के इलाज में काफी आसानी हुई। आज हर साल लगभग पचास लाख पेसमेकर बनाए जाते हैं। 
साभार: भास्कर समाचार
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