Sunday, August 21, 2016

आरोपी पर आरोप नहीं हुए तय: 12 साल की माँ को डीएनए टेस्ट से खुद साबित करना होगा कि दुष्कर्म हुआ

वह दुष्कर्म पीड़ित है, लेकिन निर्भया नहीं है। वह दलित है, लेकिन रोहित वेमुला नहीं। ऐसे ही कई मामलों से भी गंभीर है उसका मामला, लेकिन किसी के लिए मुद्दा नहीं। संसद में, सड़क पर। क्योंकि वह 'अकेली' है। 12 साल की है। दलित है। बिन ब्याही मां बन चुकी है। गांव के ही एक लड़के पर उसकी अस्मत लूटने का आरोप है। बिहार
के समस्तीपुर जिले के हाजीपुर-बाजितपुर बांध के उस पार गंगा की गोद में निकले टापू पर उसके साथ दुष्कर्म हुआ। उस दिन वह बाबू के लिए खाना लेकर नाव से उस पार गई थी। बाबू गेहूं की कटाई कर रहे थे। आरोपी धरा गया। जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड में उसने आरोपों को नकार दिया। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। 
अदालत में समय पर चार्जशीट नहीं पहुंची। आरोपी जमानत पर छूट गया। सवाल है इस उम्र में 'अकेली' (काल्पनिक नाम) की ऐसी हालत किसने की? खेलने-कूदने की उम्र में उसे मां किसने बनाया? क्या उसे इंसाफ मिलेगा? मामले को देख रही बाल कल्याण समिति समस्तीपुर के चेयरमैन तेजपाल सिंह कहते हैं, 'सच तो सामने आएगा ही।' लड़का आरोपों को नकारता रहा तो फिर कैसे? बकौल तेजपाल, 'लड़का नहीं माना तो हम डीएनए टेस्ट कराएंगे। बच्ची, फिलहाल हमारे संरक्षण में है, हम मामले को तार्किक परिणति तक ले जाएंगे।''अकेली' अनपढ़ है। बातचीत में बमुश्किल हां, हूं में जवाब देती है। गर्दन झुकाए। बिना आंख में आंख मिलाए। कभी चहकती थी, अब कुछ ज्यादा बोल नहीं पाती। उसे डीएनए टेस्ट का मतलब भी पता नहीं। उसके कहे पर किसी को यकीन नहीं। उसे ही साबित करना होगा कि -हां, मेरे साथ गलत हुआ। जिसे मैं दुष्कर्म का आरोपी बता रही हूं वही मेरे बच्चे का बाप है। टेस्ट के लिए नमूने, आरोपी और उसके बच्चे के लिए जाएंगे। फिर शुरू होगी दुष्कर्म से भी ज्यादा पीड़ादायक एक असहनीय प्रक्रिया। नतीजा आने तक रोजाना दुष्कर्म के अहसास जैसी। 
दिल्ली हाईकोर्ट में गवर्नमेंट प्लीडर कृष्ण नंदन कुमार कहते हैं कि यह अनोखा मामला है। सरकार को पीड़िता को हुनमंद बनाना चाहिए ताकि वह आगे अपने पैरों पर खड़ी हो सके। वयस्क होने तक बच्चे की परवरिश की जिम्मेदारी भी सरकार को ही निभानी चाहिए। 
फिलहाल बच्ची अपने बच्चे के संग निशांत गृह में है, बिल्कुल गुमसुम। वह किससे अपने दिल की बात कहे। उसकी मां मर चुकी है। बच्चे को जन्म देने में ही मां की मौत हुई थी, सालभर पहले। बाप, मंदबुद्धि है। गांव में ही मजदूरी करता है। जिस दरवाजे मजदूरी करता है, उसी दरवाजे उसकी रात भी गुजरती है। तीन भाई बहनों में 'अकेली' सबसे बड़ी है। छोटी बहन छह साल की है। भाई चार साल का। परिवार गंगा के बांध पर बसा है। खर-पतवार की झोपड़ी ही घर है। संपत्ति के नाम पर एक चौकी और कुछ अल्युमीनियम के बर्तन हैं। पूजा स्थान है। वहां शिव-पार्वती की मूर्ति है। 'अकेली' की चाची बताती है कि बिटिया उन्मुक्त घूमती थी। गंगा नहाती थी। उसने एक दिन पेट दर्द की शिकायत की। हम उसे गांव के डॉक्टर के पास ले गए। डॉक्टर ने दूसरी ही बात बताई। बिटिया से पूछा तो कांपते हुए उसने गांव के एक लड़के का नाम लिया। पिछले साल 21 सितंबर को थाने में केस दर्ज हुआ। अस्पताल में जांच हुई तो वह पेट से थी। गर्भ, पांच माह का था। दर्ज एफआईआर में दुष्कर्म के आरोपी की उम्र 14 साल लिखी है। पुलिस की तफ्तीश में स्कूल की जन्मतिथि 4 मई 1998 के आधार पर वह 17 साल से अधिक का निकला। पुलिस ने 15 अक्टूबर को चार्जशीट फाइनल कर दी। आरोपी पर दुष्कर्म, पॉस्को, अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम समेत तमाम धाराएं लगी हैं। इन धाराओं के बावजूद आरोपी को 22 दिसंबर 2015 को जमानत कैसे मिली? इस सवाल पर जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के लोक अभियोजक स्मृति देवनारायण कहते हैं, आरोपी को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 167 (2) का लाभ मिला। मतलब, सुनवाई करने वाली कोर्ट में चार्जशीट 90 दिनों की अवधि में नहीं पहुंची। कोर्ट को चार्जशीट 5 मई 2016 को मिली। देर कहां हुई? यह सवाल 28 मई को क्रिमिनल इन्ज्यूरी कंपनसेशन की मॉनिटिरिंग बैठक में उठा। एसपी ने 1 जून को जिला जज को भेजे जवाब में बताया कि अदालत को चार्जशीट 7 अक्टूबर 2015 को ही सौंप दी गई थी, लेकिन न्यायालय में जिस कर्मी ने चार्जशीट प्राप्त की उसने उसे सुनवाई वाली फाइल में अटैच ही नहीं किया, जिसका लाभ आरोपी को मिला। इस बीच 'अकेली' मां बन चुकी थी। चिकित्सकीय परामर्श पर उसे 23 जनवरी 2016 को पटना रेफर किया गया था। 24जनवरी को यहीं 'अकेली' का ऑपरेशन हुआ, उसने बेटे को जन्म दिया। उस दिन 'अकेली' का वजन 36 किलो था और बच्चे का 3.2 किलो। काउंसलर की रिपोर्ट कहती है कि 'अकेली' बच्चे से कोई लगाव नहीं रखती। अपनी माली हालत को देखते हुए इस हाल में 'अकेली' को उसके बाबू भी रखना नहीं चाहते। 
पांच बच्चों की मां उसकी चाची भी इसी राय की है। चाची और बाबू कहते हैं- जिसने बच्ची का यह हाल किया, अब वही उसे रखे। उससे शादी करे। सवाल है, 'अकेली' की उम्र मां बनने की थी, कानून शादी करने की है? परिवार से अलग, 24 जनवरी 2016 से निशांत गृह फिलहाल उसका ठिकाना है। जिस दिन एफआईआर दर्ज हुई उस रोज 'अकेली' को पांच माह का गर्भ था। एमटीपी (मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी) इसलिए नहीं हुई, क्योंकि इसमें बच्ची की जान को खतरा था। आज आठ महीने का उसका बच्चा है। 'अकेली' को इंसाफ का इंतजार है। वह निशांत गृह की बंद दीवारों के पार जाना चाहती है। पहले ममता शिशु गृह में कुछ दिन थी। वहीं जाना चाहती है। 
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साभार: भास्कर समाचार 
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