Sunday, August 21, 2016

विडम्बना: 14 सेकंड घूरने पर सजा देने वाला क़ानून 12 साल की माँ के बेटे से मांगता है 'दुष्कर्म' का 'सर्टिफिकेट'

नरेश जांगड़ा (फतेहाबाद) 
आज दो ख़बरें पढ़ीं। दोनों खबरों में इतना विरोधाभास कि सोचने पर मजबूर कर दिया कि हमारे देश का क़ानून इतना अजीब क्यों है। एक तरफ क़ानून 14 सेकंड में अच्छे भले आदमी को 'दोषी' बना रहा है, दूसरी तरफ वही क़ानून अपनी ही लाचारी जता कर पीड़ित से कहता है कि अपराधी का अपराध तू खुद साबित कर। 
पहली खबर: 14 सेकंड तक लगातार किसी महिला को देखने
पर यदि महिला शिकायत करे कि फलां व्यक्ति ने मुझे घूरा, तो आरोप तय हो जाएगा और कड़ी सजा की वकालत करता है हमारा 'क़ानून'। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। भले ही अपनी दुश्मनी निकालने के लिए या किसी की बे-इज्जती करने के लिए महिला झूठा आरोप लगा दे, लेकिन अपराध तो अपराध है क़ानून की नजर में। और अपराध साबित करने के लिए कोई बड़ा सबूत भी नहीं चाहिए। केवल महिला का यह कह देना कि मुझे इस व्यक्ति ने इतनी देर तक 'घूरा', बस यही सबूत काफी है तीन साल तक की जेल के लिए। हाल ही में आईपीएस ऋषिपाल ने लड़कियों और महिलाओं को 'उकसाने' के अंदाज में कहा कि 14 सेकंड तक घूरने वाले को 3 साल तक जेल हो सकती है, लड़कियों को इस बात का पूरा फायदा उठाना चाहिए। इस 'फायदे' का मतलब क्या समझ लिया जाए? मेरे ख़याल से बस यही कि अगर किसी से अपनी खुन्नस निकालनी हो या दुश्मनी निभानी हो या उसपर चरित्रहीन की 'स्टैम्प' लगवानी हो, तो थाने जाकर 'रपट' लिखवा दो कि 'उसने मुझे 14 सेकंड से ज्यादा घूरा'। क़ानून बिना कोई और सबूत मांगे आरोपी के 'कॉलर' पर अपने 'लंबे हाथ' धर लेगा। क़ानून में कोई कमी नहीं, लेकिन इसका दुरुपयोग बहुत आसान है। कारण - बस सबूत नहीं चाहिए कुछ ख़ास। 
दूसरी खबर: बिहार के समस्तीपुर जिले में 12 साल की मासूम, लगभग सवा साल पहले नाबालिग लड़के ने दुष्कर्म किया; डर के मारे घरवालों को नहीं बता पाई। पांच महीने बाद पेटदर्द हुआ तो हॉस्पिटल से पता चला कि लड़की गर्भवती है। घरवालों के पूछने पर लड़के का नाम बताया, लड़का पकड़ा गया लेकिन जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के आगे उसने अपने ऊपर लगे आरोप नकार दिए। उधर क़ानून अपने ही 'कानून' में उलझ गया। दुष्कर्म, पोस्को, एससी एसटी एक्ट की सब धाराएं लगी हुई हैं लेकिन 90 दिन में चार्जशीट कोर्ट में नहीं पहुंची तो सेक्शन 167 (2) के तहत आरोपी पर आरोप तय नहीं हो पाया और जमानत हो गई। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। अदालत का कहना है कि लड़के ने अपराध कबूल नहीं किया, इसलिए अब डीएनए टेस्ट ही सहारा है। उधर डिलीवरी के बाद 12 साल की माँ अपने 7 महीने के बेटे के साथ निशांत गृह में अकेली सी और पत्थर सी पड़ी हुई है। बाप ने घर पर रखने से मना कर दिया, चाची कहती है जिसने ये सब किया वही रखेगा इसको, वो शादी करे लड़की से। एक तरह के तिरस्कार और क़ानून की जटिलताओं में उलझी बेबस बच्ची के साथ एक बार फिर दुष्कर्म का सिलसिला शुरू होने को है। माँ-बेटे के सैंपल लिए जाएंगे और जब तक रिपोर्ट नहीं आती, दुष्कर्म से भी भयावह पीड़ा से गुजरने वाली है एक मासूम। 
क्या कहेंगे आप दोनों ख़बरें पढ़ कर? एक लड़की के मौखिक बयान से आदमी 3 साल के लिए अंदर और एक लड़की जिसकी हालत देखकर किसी सबूत की जरूरत नहीं, उसे क़ानून की पेचीदगियां घुट घुट कर मरकर जीने को मजबूर कर रही हैं और आरोपी क़ानून के ही नियमों में खुला घूम रहा है। 
भारत के कानून के बारे में हरेक कहता है कि महिलाओं के लिए बहुत हितकर प्रावधान हैं क़ानून में, लेकिन अब वही 'घूरने की सजा देने वाला' कानून एक प्रत्यक्ष 'अपराधी' को सजा क्यों नहीं दे पा रहा और क्यों दुष्कर्म पीड़िता को दुष्कर्म जैसी ही जिंदगी दे रहा है?
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: Naresh Jangra (Lecturer in Maths)
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