Sunday, August 21, 2016

लेख: 14 सेकंड तक महिला को घूरने पर सजा का क़ानून जो है बेहद अतार्किक

क्षमा शर्मा (लेखिका साहित्यकार एवं स्तंभकार हैं)

दिल्ली के निर्भया मसले के बाद नया दुष्कर्म कानून बना था, जिसमें घूरने तथा पीछा करने को एक गंभीर अपराध माना गया था। यह अपराध अगर साबित हो जाए तो तीन साल तक की जेल हो सकती है। लगभग इन्हीं दिनों यह लेखिका दिल्ली पुलिस द्वारा आयोजित एक गोष्ठी में गई थी। इसमें उच्चतम न्यायालय के एक वरिष्ठ वकील भी आए थे। यह वकील साहब महिला मुद्दों पर काफी प्रखर और अच्छे विचार रखने के लिए जाने जाते हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। गोष्ठी से पहले इन्हीं से बातचीत हो रही थी। जब उनसे पूछा गया कि घूरने और पीछा करने पर इस तरह के कानून और सजा के बारे में आपके क्या विचार हैं। उन्होंने इसे सही बताया। मगर इसे साबित कैसे किया जाएगा, पूछने पर बोले कि साबित करने के लिए तो लड़की या महिला का कहना भर काफी होगा। उनकी बात सुनकर मैंने कहा कि आप मुझसे बातें करते हुए मुङो देख रहे हैं न। उन्होंने कहा कि हां। मगर अगर मैं यह कहूं कि आप मुङो घूर रहे हैं। यह बात सुनकर वह हंसने लगे। यानी कि कोई अब अगर किसी को देख भर ले तो मुश्किल में पड़ सकता है। अगर कोई लड़की कह दे कि फलां आदमी उसे देख नहीं रहा था, घूर रहा था तो हो सकता है कि उस आदमी को जेल भी जाना पड़े। 

हाल ही में ऋषिपाल नाम के एक आइपीएस अफसर ने लड़कियों का हितू बनते हुए कहा कि अगर किसी लड़की को कोई चौदह सेकेंड तक घूरे तो उसे जेल जाना पड़ सकता है और लड़कियों को इस बात का पूरा फायदा उठाना चाहिए। यह सोचकर हैरत होती है कि कानून का नाम लेकर आखिर समाज को किस तरफ धकेला जा रहा है। क्या कोई भी समाज मात्र कानूनी दांव-पेच से चलता है या कि जीवित रहने के लिए दूसरे को जीवित रहने देने के नियम का पालन करना पड़ता है। इसमें करुणा, क्षमा, दया जैसे अनोखे मूल्य भी शामिल हैं। हालांकि आजकल जो भी इन मूल्यों की बात करता है उसे पिछड़ा हुआ, कंजरवेटिव आदि आराम से कहा जा सकता है।

यह सच है कि बहुत से लोग लड़कियों को परेशान करने की हद तक घूरते हैं। पीछा करने वालों के किस्से भी आम हैं। लेकिन आज की दुनिया में मात्र देखने को बदला लेने के लिए घूरना कह देना भी मुश्किल नहीं है। जैसा कि हम अन्य कानूनों के दुरुपयोग में देखते आए हैं। एक तरफ सब हाहाकार करते हैं कि देश में दुष्कर्म के मामले बढ़ते जा रहे हैं। इनमें अधिकांश लोग वे हैं जो निर्भया के समय देश में दुष्कर्म के खिलाफ कठोर से कठोर कानून बनाने की मांग कर रहे थे। यहां तक कि इस्लामी देशों की तरह अपराधियों को सरेआम चौराहों पर फांसी देने की मांग की जा रही थी। दूसरी तरफ ऐसी खबरें भी आती हैं कि दुष्कर्म के रिपोर्ट किए गए सारे मामलों में 45 प्रतिशत मामले झूठे होते हैं। इनमें प्रापर्टी, लड़के के माता-पिता को साथ न रखना तथा असफल लव अफेयर, शादी के बाद दूसरे से संबंध और उनकी जानकारी पति को होना, नौकरी से हटाया जाना, इंक्रीमेंट या प्रमोशन का न मिलना, ठीक तरह से काम न करने पर वार्निग मिलने आदि के मामले बहुतायत से होते हैं।

आखिर इन झूठे मामलों का मकसद सिवाय बदला लेने के क्या होता है। अकसर ऐसे आरोप साबित भी नहीं हो पाते। हां समय, पैसे की बर्बादी और आपसी मनमुटाव बढ़ता रहता है। इसीलिए ऐसे मामलों में अकसर अदालतें कानून का दुरुपयोग करने वाली औरतों को कड़ी फटकार भी लगाती हैं। लेकिन प्राय: सबक नहीं लिए जाते। पिछले दिनों आपको याद होगा कि एक नेता पर एक औरत ने कई साल बाद दूसरी बार दुष्कर्म का आरोप लगाया था। पूछने पर उसने कहा था कि पहली बार नेता ने उससे माफी मांग ली थी और उसने उसकी बात पर विश्वास कर लिया। दोबारा सालों बाद फिर उसने ऐसा ही किया। यह बात कितनी सच होगी कहना मुश्किल है। कानून के दुरुपयोग के कारण जो लड़कियां अपराधों का शिकार होती हैं, नृशंसता को ङोलती हैं उन्हें भी न्याय पाने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। लोग इनके कहे को भी सच नहीं मानते। सच तो यह है कि इन दिनों बड़ी संख्या में पुरुष ही दूसरे पुरुषों से बदला लेने के लिए औरतों का हथियार की तरह इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा लिव इन में रहने पर जब लड़के-लड़की में बात बिगड़ जाती है तो अकसर लड़कियां लड़कों पर दुष्कर्म का आरोप लगा देती हैं। अदालतें बार-बार इस बात के लिए चेता चुकी हैं कि वर्षो तक साथ रहकर सहमति से बनाए गए संबंध दुष्कर्म की श्रेणी में नहीं आते। फिर जिन लड़कों पर इस तरह के आरोप बिना किसी अपराध के लगाए गए हों, उन पर क्या बीतती है। अड़ोस-पड़ोस, घरवालों, दफ्तर में सहयोगियों का सामना वे कैसे कर पाते होंगे। जो पुरुष अपराधी हैं उन्हें सजा जरूर मिले, लेकिन जिन्होंने कुछ नहीं किया उन पर आरोप लगाने से आखिर औरतों और स्त्री विमर्श का क्या भला होता है, सिवाय इसके कि समाज में नफरत और अविश्वास बढ़ता है।

आजकल दुष्कर्म शब्द को हर बात के लिए इस्तेमाल करके इतना हलका बना दिया गया है कि इस अपराध से लड़कियों को जो शारीरिक-मानसिक क्षति पहुंचती है, वह अकसर सामने नहीं आ पाती। यही नहीं जिस ट्रामा से वे जिंदगी भर गुजरती हैं, उसे दूर करने के गंभीर प्रयासों की भी भारी कमी नजर आती है। ऐसे में किसी का चौदह सेकेंड घूरना अपराध है, यह बात अजीब सी लगती है। इस बात का सोशल साइट्स पर खूब मजाक भी बना। किसी ने कहा कि एक लड़का शादी के लिए लड़की देखने गया था, मगर जेल चला गया। लड़की ने उस पर घूरने का आरोप लगा दिया। एक अध्यापक से एक लड़की ने सवाल किया। जब वह उसकी तरफ देखकर जवाब देने लगा तो पुलिस घूरने के आरोप में उसे क्लास से ही उठाकर ले गई। किसी और ने कहा कि अगर कोई काला चश्मा लगाकर किसी को चौदह सेकेंड तक घूर रहा हो तो उसे क्या सजा मिलेगी। हंसी-मजाक तो अलग, मगर जिस पुलिस अफसर ने इस तरह का बयान दिया था, उसे भी अंदाजा नहीं रहा होगा कि इस बात में कितनी क्रूरता और अतार्किकता छिपी है।

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साभारजागरण समाचार 
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