Saturday, August 20, 2016

लाइफ मैनेजमेंट: हर क्षेत्र में महिलाएं दे रही हैं पहले से बेहतर परिणाम

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
स्टोरी 1: 'डैडी यादरखिए सिर्फ एक कांस्य पदक जो देश को अब तक मिला है और वह एक लड़की ने जीता है'। शुक्रवार सुबह मुंबई से नागपुर के लिए रवाना हो रही एयरइंडिया की उड़ान में पीछे की सीट से लड़की की आवाज आई। यात्रियों को हंसाने के लिए ये काफी था। युवा मां ने शरारती हंसी हंस रही बेटी के मुंह पर हाथ रखकर उसे
चुप किया और डांटते हुए कहा, 'तुम्हें ऐसे बात नहीं करनी चाहिए'। लड़की ने फिर कहा, 'अगला पदक भी लड़की ही लाने वाली है।' यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। मां इससे नाराज नहीं थी कि बेटी पिता से क्या कह रही है, बल्कि वह सह-यात्रियों की जोरदार हंसी से क्रोधित थी। कुछ सेकंड पहले ही तो पिता ने महिलाओं के प्रति सम्मान जताने वाली बात बेटे से कही थी कि भारी हैंड लगेज छोटी बहन को मत दो, क्योंकि वह लड़की है। यही बात आगे बढ़ी और ऐसे संवाद में बदल गई कि पिता से कहे गए बेटी के कड़े शब्दों को सुन रहे अधिकांश यात्रियों के चेहरों पर मुस्कान गई। 

माता-पिता की अनुमति से मैंने उस लड़की से बात की। 15 साल की मीनाक्षी रियो ओलिंपिक में चमक रहे दो भारतीय सितारों की उपलब्धियों से अच्छी तरह वाकिफ थी। उसकी एक बात ने सिर्फ मुझे ही नहीं नागपुर एयरपोर्ट पर अपने लगेज ले रहे अन्य लोगों को भी चकित कर दिया था। उसने कहा, 'साक्षी दीदी उस जगह से हैं जहां हर साल करीब 35000 लड़कियों को मार दिया जाता है। उन्होंने वह कर दिखाया है जो देश का कोई पुरुष नहीं कर सका'। अधिकांश लोगों ने उसकी आवाज में गर्व महसूस किया, लेकिन वे उस अदृश्य गुस्से या प्रतिशोध को नहीं देख पाए थे, जिसमें उसकी साहस दिखाने की प्रतिबद्धता झलक रही थी। 
स्कूल जाने वाली यह लड़की साक्षी के यह कहने से प्रभावित थी, 'मैं तेरे लिए मेडल लेकर आऊंगी। वही तेरे लिए राखी होगी'। रियो ओलिपिंक के लिए जाने से पहले हरियाणा के रोहतक की साक्षी मलिक ने यही बात भाई सचिन से कही थी। साक्षी उसके लिए 58 किलो वर्ग की फ्रीस्टाइल रेसलिंग में कांस्य पदक जीत कर लाई है।यही बात इस लड़की ने दो बार दोहराई। कोई आश्चर्य नहीं है कि दो दिन में दो महिलाओं के ये दो मेडल, सभी वर्गों में चर्चा का विषय हैं। दूसरा मेडल हैदराबाद की पीवी सिंधु का है, जिन्होंने अपने लिए पदक पक्का कर लिया है। उसकी इच्छा है कि आने वाले वर्षों में वह भी अपने भाई के लिए ऐसी ही कोई चीज लाए, जो उसके लिए राखी की तरह हो। 
स्टोरी 2: सिराइकेला-खरसवांकी 21 साल की लड़की चंदना प्रधान चावल व्यापारी की बेटी है और रूढ़िवादी परिवार से हैं। एडवेंचर स्पोर्ट्स तो इस परिवार के लिए ऐसा शब्द है जो सिर्फ किताबों में ही पढ़ा है, लेकिन समाज की ओर से प्रतिबंधों ने उसे योग्यता साबित करने के लिए प्रेरित किया और वह उत्तरकाशी में टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन के आउटडोर लीडरशिप प्रोग्राम की सदस्य बन गई। 2014 में मनाली में अटल बिहारी इंस्टीट्यूट के अलाइड स्पोर्ट्स की बेसिक और एडवांस ट्रेनिंग में उसे ग्रेड मिला। पिछले साल अप्रैल में वह माउंट एवरेस्ट की राह में थी और नेपाल के भूकंप में फंस गई थी। वहां उसकी प्रतिबद्धता और सक्रिय भूमिका ने ग्रीनलैंड बिज़नेसमैन और पर्वतारोहण पेशेवर चार्ल्स मास्टर को प्रभावित किया। वे भी एवरेस्ट पर फंस गए थे। मास्टर गांव की इस दिलेर लड़की से इतना ज्यादा प्रभावित हुए कि उन्होंने उसकी ग्रीनलैंड के ग्लेशियर ट्रैक और साउथ अमेरिका के माउंट अकॉनकागुआ अभियान को उसी विंटर में प्रायोजित किया। अब इस साल मास्टर जॉर्जिया में एक और ट्रैक प्रायोजित कर रहे हैं, जिसके लिए चंदाना यूएस वीज़ा का इंतजार कर रहीं है। 
फंडा यह है कि सतहके नीचे बह रही धारा दर्शाती है कि भारतीय महिलाएं अधिक दृढ़ प्रतिज्ञ और महात्वाकांक्षी हो रही हैं। 

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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