Friday, August 19, 2016

लाइफ मैनेजमेंट: सीखना जीवन की अंतिम सांस तक ख़त्म नहीं होता

एन. रघुरामन (मैनेजमेंटगुरु)
वे रिटायर्डहैं और शिलांग में उनका शानदार घर है। वे सुकूनभरी आराम की जिंदगी जी सकते हैं। उनकी उम्र और संपत्ति वाला कोई भी व्यक्ति ऐसा ही करेगा, लेकिन उन्होंने एक महीने के लिए कर्नाटक के चिकमंगलूर में नए काम की ट्रेनिंग शुरू की और कॉफी सीड प्रोसेसिंग के सारे तरीके सीखकर लौटें। उन्होंने कॉफी पाउडर बनाने की एक यूनिट शुरू की और अपनी सारी सेविंग्स इसमें लगा दी। वे जानते थे कि इस क्षेत्र में मौसम अधिकतर कोहरे से ढंका रहता है और 365 दिन रहने वाला अनुकूल मौसम गर्म पेय पदार्थों के लिए अच्छा होता है- जैसे असम की चाय हो या मेघालय की कॉफी। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। रिटायर्ड कॉलेज लेक्चरर दोन्दोर गिरि नांगखेलॉ परिवार ने अप्रैल से नया कॉफी ब्रैंड शुरू किया है ताकि कॉफी पीने की संस्कृति को बढ़ाया जाए किसानों को ब्रूमस्टिक्स की जगह कॉफी के प्लांट लगाने के लिए प्रेरित किया जाए। वे किसानों को अरेबिका और रोबस्टा बीन्स उगाने की ट्रेनिंग दे रहे हैं। 
इस लेक्चरर ने फैक्ट फाइल पूरी तरह तैयार रखी है। वे जानते हैं कि मेघालय में सालाना कॉफी प्रोडक्शन छह से आठ टन तक है, लेकिन सिर्फ शिलांग में ही सालाना खपत 20 टन तक हो सकती है अगर कोई नियमित रूप से कॉफी पीने की आदत को बढ़ावा दे। कोई बड़ी कंपनी यह काम करे इसका इंतजार किए बिना, उन्होंने और परिवार ने यह पहल की है। उन्होंने एक कंपनी शुरू की है- स्मोकी फाल्स ट्राइब कॉफी। यह परिवार नार्थइस्ट के नॉन्गेथेमाई में लॉजेनरियू में पहली रोस्टिंग और कॉफी ग्राइंडिंग यूनिट चला रहा है। दोन्दोर इस तथ्य से वाकिफ हैं कि 2016-17 में कॉफी प्रोडक्शन में कुल 28000 कमी है, जो 348000 मीट्रिक टन से 320000 मीट्रिक टन तक गया है। वे इस बात के प्रति आश्वस्त हैं कि नॉर्थइस्ट कॉफी बीन्स की जरूरतों को पूरा करने में सक्षम है। साथ ही यह स्थानीय बाजार को भी बढ़ा सकता है। किसानों को इस अवसर के प्रति जागरूक करने के लिए उन्होंने 46 गांवों का दौरा किया है, जहां कॉफी के पेड़ पाए जाते हैं। फिर उन्होंने कॉफी बीन्स के फायदों का प्रचार शुरू किया। हालांकि इस पहाड़ी क्षेत्र में जागरूकता की कमी के कारण उनका परिवार सिर्फ 12 गांवों से ही बीज हासिल (मुख्यरूप से अरेबिका) करने में सफल हो सका। नई कंपनी किसानों से कॉफी के बीज 75 रुपए प्रति किलो की दर से खरीद रही है। 
वर्तमान में अरेबिका और रोबस्टा दो किस्मों के बीजों को मुख्य रूप से इस यूनिट में प्रोसेस किया जा रहा है। इनके अलावा कॉफिआ खासिआना और कॉफी बेंगालेन्सेस जैसे देसी कॉफी किस्में भी हैं, जिनके व्यावसायिक इस्तेमाल के बारे में कंपनी सोच रही है। चूंकि कॉफी पीना इस क्षेत्र में नया चलन है इसलिए कंपनी कॉफी को रोस्ट करने और पीसने के बाद 100 ग्राम और 50 ग्राम के पैकेट में उपलब्ध करा रही है। इन पैकेट्स पर बिना कॉफीमेकर के भी कॉफी को तैयार करने का तरीका भी लिखा होता है। कॉफी पीने की संस्कृति विकसित करने के अलावा उनका एक बड़ा प्लान भी है कि लोगों के सामने अवसर रखकर बीच कॉफी प्लांटेशन को प्रचारित करें। पहले कदम में वे कॉफी प्लांटेशन को पूरे क्षेत्र में सरल बनाना चाहते हैं। दोन्दोर दक्षिणी घाट के गांवों में लगातार जा रहे हैं ताकि किसानों को कॉफी प्लांटेशन के फायदों और आर्थिक लाभ के बारे में बता सकें। फिर वे लोगों को यह भी बताते हैं कि ब्रूमस्टिक्स उगाना किस तरह भूमि के लिए भी हानिकारक है। कैसे ये जमीन को शुष्क बनाती है और इसके पोषक तत्वों को कम कर देती है। वे यह भी सिखा रहे हैं कि कैसे कॉफी बीन्स के साथ फलों की खेती भी की जा सकती है। 
फंडा यह है कि अगरआप सीखना चाहें तो जीवन में अंतिम सांस तक यह खत्म नहीं हो सकता। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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