Wednesday, August 17, 2016

लाइफ मैनेजमेंट: सेब की तुलना सेब से करें, संतरे से नहीं (दीपा कर्माकर पर लेख)

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
उनके पितावेट लिफ्टिंग कोच थे। यही कारण है कि जब बेटी का जन्म हुआ तो सोसायटी, परिवार में कई लोगों और कभी-कभी तो पिता ने भी सोचा कि उन्हें बेटा होता तो वह उनके खेल को आगे ले जाता। इसके पहले कि दुलार और गौरी फैमेली प्लान करते बेटी ने खेल में शानदार हुनर दिखाना शुरू कर दिया। 9 अगस्त 1993 को
जन्मी इस लड़की की जिमनास्टिक्स की प्रतिभा देखकर कई लोग चकित रह जाते। पिता ने ट्रेनिंग का महत्व समझा और उसे सोमा नंदी नाम की प्रोफेशनल को सौंप दिया, जिनके साथ उसने पतरे की छत के ट्रेनिंग रूम में शुरुआती सबक सीखे। और ढाई साल में उसने नॉर्थ-ईस्ट गेम्स में बेलेंस बीम में गोल्ड मेडल जीत लिया। इसके बाद से पीछे मुड़कर नहीं देखा। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। सोमा नंदी ने अपने पति और ट्रेनर बिश्वेश्वर नंदी को उसे सौंपा, जो आज तक उसे ट्रेनिंग दे रहे हैं। सोमा जानती थीं कि यह छोटी लड़की कई जगह जाएगी और उनके पति को भी परिवार से दूर रहना होगा। उनका यह भरोसा सही था। लड़की लगातार यहां से वहां जाती रही और उनके पति भी अधिकतर घर से दूर ही रहे। 
यह लड़की है त्रिपुरा की दीपा कर्माकर, जिसने रविवार और स्वतंत्रता दिवस की मध्यरात्रि को करोड़ों लोगों के दिल की धड़कनों को थाम दिया था। रियो ओलिंपिक में प्रूडोनोवा में उसका ओवरऑल स्कोर 15.066 रहा। अब तक वह राज्य से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर तक के कई इवेंट्स में 77 मेडल जीत चुकी है। इसमें 67 गोल्ड मेडल हैं। प्रूडोनोवा में पूरी रफ्तार से भागते हुए स्प्रिंगबोर्ड से उछलकर एक जंप लेना होता है। इसके बाद दोनों हाथों के सहारे पैरों को हवा में रखते हुए दो समरसॉल्ट करना होते हैंप। फिर पूरे संतुलन से सामने की ओर लैंडिंग करनी होती है। अगर इसमें कोई भी चूक हो तो रीढ़ या गर्दन की हड्‌डी टूट सकती है। वर्ल्ड चैम्पियनशिप के पहले दीपा कर्माकर आठ महीने तक बिल्कुल ट्रेनिंग नहीं कर पाई थीं, क्योंकि इससे जुड़ी कई सुविधाएं उनके पास उपलब्ध नहीं थीं। इसके बाद उसने सुकाहारा में आखिरी तीन महीनों में ट्रेनिंग की, जबकि इसी प्रतियोगिता में शामिल दूसरे खिलाड़ी इसका अभ्यास करीब तीन सालों से कर रहे थे। 
हालांकि, वो रियो ओलिंपिक में चौथे स्थान पर रही। उसने मिल्खा सिंह और पीटी ऊषा जैसे खिलाड़ियों की बराबरी की। इस इवेंट में अगर उसे मेडल मिलता तो वह कई और खिलाड़ियों से मीलों आगे होती। वह ओलिंपिक में शामिल हुई पहली भारतीय महिला जिम्नास्ट है और 52 सालों में ओलिंपिक में शामिल भारत की पहली जिम्नास्ट भी। रियो ओलिम्पिक 2016 में महिलाओं के वॉल्ट जिमनास्टिक्स में उसे चौथा स्थान मिला। दीपा कर्माकर रियो ओलिपिंक में आखिरी मुकाबले में पिछड़ गई, लेकिन देश के हर व्यक्ति पर असर छोड़ गई। बिना किसी विदेशी ट्रेनिंग के और सिर्फ तीन महीने की तैयारी के साथ दीपा की उपलब्धि इस प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीतने वाली सिमोन बाइल्स से भी बड़ी है। पूर्व ओलिंपिक चैंपियंस के समक्ष चौथे नंबर पर आना भी उल्लेखनीय प्रदर्शन है। इवेंट के बाद दीपा ने विनम्रता से ट्वीट किया - '1.3 अरब लोगों से माफी। मैं इसे संभव नहीं बना सकी। बहुत कोशिश की। संभव हो तो मुझे माफ करें।' उसी रात उनके पिता ने मीडिया से कहा, 'मेरी बेटी ने मुझे इतना गर्वित किया है कि मुझे बेटे की जरूरत नहीं। वह मेरा बेटा है। मुझे बेटे की कमी महसूस नहीं होती।' यह बात सिर्फ दीपा के लिए बल्कि देश की हर बेटी के लिए मेडल है। निश्चित ही 2020 का टोक्या ओलिंपिक ज्यादा दूर नहीं है। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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