Monday, August 22, 2016

आधुनिक मन्त्र: अपनी जड़ों की और लौटना फायदेमंद भी और फैशनेबल भी

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
स्टोरी 1: वे तमिलनाडु के मदुराई के निकट एक छोटे-से गांव के हैं। परिवार के पास 10 एकड़ जमीन होने के बावजूद उन्हें गांव छोड़कर शहर में पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया गया ताकि वे कामयाब व्यक्ति बन सकें। कारण सीधा-सा था। गांव में बिजली नहीं थी, जल स्रोत कभी 24 थे, लेकिन अब घटकर सिर्फ छह रह गए थे और इसकी वजह जानने के लिए किसी विशेषज्ञ की जरूरत नहीं है। सबसे बड़ी बात, कम आबादी वाले इस गांव में नौकरी के अवसर नहीं हैं। आज़ादी के बाद से हमने गांवों की हर तरह की आत्म-निर्भरता खत्म कर दी है। यह गांव इस तथ्य की गवाही देता है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। हर महात्वाकांक्षी युवा की तरह एलेंगो कल्लानाई भी बेहतर अवसरों की तलाश में गांव छोड़कर चले गए। वे रिसर्च स्कॉलर बने और आईटी में शानदार कॅरिअर बनाया। किंतु उन्हें हमेशा लगता कि इस चूहा दौड़ में उनका कोई वजूद नहीं है और वे किसी एक स्थायी क्षेत्र में 'कुछ' बनकर दिखाना चाहते थे। यह बड़ी बात है कि चमकदार और अच्छी आमदनी वाला कॅरिअर बनाकर वे रुक नहीं गए। समाज को कुछ देने की तमन्ना उनके भीतर जीवित रही। उनके लक्ष्य में अपनी रिसर्च काम आई और उन्होंने सोचा कि ऑर्गनिक फार्मिंग में उन्हें कुछ करके दिखाना चाहिए। 

जब उन्होंने छह साल पहले इच्छा जाहिर की तो अपनी इस साहसिक योजना में उन्हें प्रोत्साहित करने वाला कोई नहीं था। इसकी बजाय आईटी के उनके सहयोगी प्रोफेशनल्स ने उन्हें सनकी बताकर उनकी बातों को खारिज कर दिया। किंतु उन्होंने निश्चय कर लिया था। उन्होंने निश्चित आमदनी का मोह छोड़ा और आर्गनिक फार्मिंग की अज्ञात जोखिमभरी राह पर निकल पड़े। आज वे इस क्षेत्र मंे ट्रेंडसेटर हैं और उनके गांव आसपास के क्षेत्रों में हर कोई टिकाऊ खेती की पद्धतियां जानने के लिए आशाभरी निगाहों से उनकी ओर देखता है। एलांगो अब सिर्फ आर्गनिक फार्मर हैं बल्कि वे पर्यावरणविद और सामाजिक टिप्पणीकार हो चुक हैं और दक्षिण के विभिन्न चैनलों पर दिखाई देते रहते हैं। वे किसान उसकी जमीन के बीच रिश्ते को लगातार पुनर्परिभाषित कर रहे हैं। उनके शुरुआती दिनों में फार्मिंग पर उनकी यात्रा किसी युद्ध से कम नहीं थी। मिट्‌टी को उपजाऊ बनाने के लिए उन्होंने गर्मियों में उसे जोता, हरियाली की बोवनी कर उसे पुन: जोता और उसे बंद कर दिया। उसके बाद उन्होंने नवधान्य ग्रेन बोया, जिसके बाद केले के प्लांटेशन विकसित किए। बिचौलियों द्वारा किसान का मुनाफा मार लेने वाले बाजार के नियमित रास्ते को अपनाने की बजाय उन्होंने अपने आईटी के दिनों में विकसित किए नेटवर्क का इस्तेमाल करते हुए दक्षिण के चारों राज्यों में ग्राहकों को सीधे 50 किलो के पैकेट बेचने शुरू किए। इस बीच, वे महाराष्ट्र, पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और ओड़शा में आयोजित कृषि उत्सवों में गए और वहां चावल की देशी किस्म को उगाना सीखा। छत्तीसगढ़ में सड़क के किनारे खाने के ठिकानों में श्रेष्ठतम चावल परोसते देखकर वे बड़े प्रभावित हुए। वे वापस आए अौर मदुराई क्षेत्र की धान की स्थानीय किस्म को लिया, क्योंकि एक तो यह उपज ज्यादा देती है और इस पर बाहरी कारकों का असर नहीं पड़ता। 
आज विभिन्न कृषि समुदायों के सलाहकार के रूप में वे धान की देशी किस्म अपनाने की सलाह देते हैं, जिनकी फसल लेने में हमारे पूर्वज माहिर थे। ये किस्में जमीन और क्षेत्र बदलने के साथ बदल जाती हैं और हर 100 से 200 किलोमीटर में बदल जाती हैं। 
स्टोरी 2: आर्गनिक फार्मिंग के उत्साहियों के एक स्वयंसेवी समूह ने घरों की छत या आंगन में आर्गनिक वेजीटेबल गार्डनिंग के लिए 600 वर्ग फीट का डिज़ाइन बनाया है। आर्गनिक केरल चैरिटेबल ट्रस्ट और सेक्रेड हार्ट कॉलेज, केरल के प्रिंसिपल जे. प्रशांत बताते हैं कि इस डिज़ाइन से हर साल 350 से 500 किलो सब्जियां उगाई जा सकती है, जो पांच सदस्यों के परिवार के लिए पर्याप्त हैं। यह डिज़ाइन खासतौर पर उन परिवारों के लिए बनाया गया है, जिनके पास जगह की कमी है। 600 वर्ग फीट के टेरैस गार्डन में बीन्स, चवला फली, ककड़ी, परवल, हरी पत्तेेदार सब्जियां, मिर्च, टमाटर, भिंडी, बैंगन और जमीकंद रतालू जैसे जमीन के अंदर उगने वाली चीजें उगाई जा सकती हैं। जब खेती में सब्जियों का सुस्ती का आलम हो तो जमीकंद रतालू जैसी चीजें उगाई जा सकती हैं जमीन की कमी से उबरने और हर शहरी परिवार को सब्जियों के मामले में आत्मनिर्भर बनाने के लिए उन्होंने अपने डिज़ाइन के सारे ब्योरे www.organickeralacharitabletrust.com पर उपलब्ध कराए हैं। 
फंडा यह है कि अपना अन्न सब्जियां उगाना लाभप्रद स्वास्थ्यवर्द्धक तो है ही कुछ हद तक फैशनेबल भी है। फिर अपनी जड़ों की ओर लौटना वाकई समझदारी है। 

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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