Sunday, August 21, 2016

विचारणीय: एथलीटों पर धनवर्षा जीतने के बाद ही क्यों? पहले क्यों नहीं?

भारत के खाते में ओलंपिक पदकों की संख्या इसलिए कम रहती है, क्योंकि यहां पर पदक जीतने के बाद तो दूसरे राज्यों की सरकारें भी तिजोरी खोल देती हैं। लेकिन इसके लिए कड़ी मेहनत कर रहे एथलीट अपनी सरकारों से भी रुपये मिलने की आस लगाते-लगाते कंगाल हो जाते हैं। पीवी सिंधू और साक्षी मलिक
के पदक जीतते ही केंद्र सरकार, हरियाणा सरकार, तेलंगाना सरकार सहित निजी संस्थाओं ने धन वर्षा करनी शुरू कर दी है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। दिल्ली सरकार जहां अपने प्रदेश का नहीं होने के बावजूद हैदराबाद की सिंधू को दो करोड़ और रोहतक की साक्षी को एक करोड़ दे रही है तो हरियाणा सरकार सिंधू को 50 लाख, महाराष्ट्र की ललिता बाबर व त्रिपुरा की दीपा करमाकर को 15-15 लाख रुपये दे रही है। दिल्ली की राज्य सरकार डीटीसी में कार्यरत साक्षी के पिता तक को प्रमोशन दे रही है, लेकिन इसी राज्य में कई ऐसे एथलीट हैं जो राज्य सरकार से पदक की तैयारी के लिए मिलने वाली मदद के लिए तरस रहे हैं।
राज्य सरकारें बदलें नीतियां: अब समय आ गया है कि पदकों पर खुश होने की जगह पदकों की तैयारियां करनी चाहिए। देश में खेल राज्यों का विषय है, लेकिन तैयारियों पर पूरा खर्च केंद्र सरकार करती है। जब एथलीट पदक जीतते हैं तो राज्य सरकारें उन्हें हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और तेलंगाना का बताकर कुछ करोड़ देती हैं और अपना पूरा प्रचार करती हैं। यही कारण है कि हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सरकार के दौरान ऐसे एथलीटों को भी प्रदेश का बताया गया जो वहां पैदा भी नहीं हुए थे और न ही खेले थे। इस बार उत्तर प्रदेश सरकार ने भी साक्षी को रानी लक्ष्मीबाई पुरस्कार देने की घोषणा की, लेकिन दिल्ली और उत्तर प्रदेश सहित बाकी राज्यों की सरकारों को यह सोचना चाहिए कि उनके प्रदेश के एथलीट खेलों में अच्छा प्रदर्शन क्यों नहीं कर पा रहे हैं?
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साभारजागरण समाचार 
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