Friday, October 28, 2016

लाइफ मैनेजमेंट: एेसी कहानी रचें, जो हमारे बाद भी जीवित रहे

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
स्टोरी 1: यह कोई रहस्य की बात नहीं है कि उड़ी की घटना के बाद देशभक्ति का बहुत शोर मच गया है, लेकिन जमीनी पहल निश्चित ही अधिक नहीं है। किंतु 36 वर्षीय मुकेश साहू ने अलग ढंग से सोचा और उड़ी की घटना
के बाद मध्यप्रदेश के सागर में अपना पहला रेस्तरां शुरू किया। नाम है 'राधा कृष्ण रेस्तरां एंड स्वीट शॉप।' उन्होंने पूरा बिज़नेस सैनिकों को समर्पित कर दिया है, क्योंकि शहर महार रेजीमेंट का ठिकाना है। इस रेस्तरां में कोई भी सैनिक डाइनिंग हॉल में जाकर भोजन कर सकता है और पहचान-पत्र दिखाने पर उसे 20 फीसदी डिस्काउंट दिया जाएगा। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। यदि वे वर्दी में भोजन करें तो डिस्काउंट 30 फीसदी हो जाएगा, क्योंकि वर्दीधारी सैनिक को सर्व करना गर्व की बात होगी। शहीद सैनिक के पालकों को नि:शुल्क भोजन दिया जाएगा और कोई सवाल नहीं पूछे जाएंगे। 
स्टोरी 2: पंजाब के अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर एंट्रेन्स प्लाजा में 50 करोड़ रुपए की लागत से मल्टीमीडिया इंटरप्रीटेशन सेंटर बनाया जा रहा है। यह अपनी तरह का देश में और शायद दुनिया में पहला सेंटर है। यह आधुनिकतम टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके सिख धर्म और इसके परोपकारी दर्शन की कहानी वहां आने वाले श्रद्धालुओं को विस्तारपूर्वक बताएगा। यह महत्वपूर्ण पहल है, क्योंकि अमृतसर का स्वर्ण मंदिर नि:संदेह दुनियाभर के विभिन्न आस्थाओं के पर्यटकों के लिए सबसे बड़ा आकर्षण है। पर्यटकों की विशाल संख्या को मैनेज करने के लिए राज्य सरकार ने चरणबद्ध विकास की योजना बनाई है। यदि आप अभी इस प्रसिद्ध तीर्थस्थल जाएं तो आप देखेंगे कि 'गुरु की नगरी' ने इस सोमवार से अलग ही उत्सवी स्वरूप धारण कर लिया है। 
दूसरे चरण में स्वर्ण मंदिर की ओर जाने वाली सारी गलियों को हेरीटैज स्ट्रीट की तर्ज पर हेरीटैज लुक दिया जाएगा। फिर अगले पांच वर्षों में पूरे शहर को सच्चे अर्थों में परम्परागत स्वरूप में लाने का प्रयास किया जाएगा। यह सब हो जाने के बाद धार्मिक आस्थाओं की यह नगरी एथेन्स या एम्सटर्डम जैसे कई वैश्विक शहरों की तरह वास्तव में लैंडमार्क हो जाएगी, जो अपनी परम्परागत कहानियों को सिर्फ प्रदर्शित करेगी बल्कि विस्तार से उसके बारे में बताएगी भी। 
स्टोरी 3: कई बच्चे शायद ही कभी सब्जियों की खेत से लेकर डाइनिंग टेबल तक की यात्रा की जटिलता को समझते हैं और कई तो सोचते हैं कि सब्जियां तो उनके रेफ्रिजरेटर में उगती हैं! अगली पीढ़ी भी ऐसी हो जाए इसके लिए तमिलनाडु स्थित कोयम्बटूर के विश्वनाथन 'प्लक एंड कुक' नामक नई अवधारणा लेकर आए हैं। आप खेत में जाएं, अपनी पसंद की सब्जियां तोड़ें यानी आप खुद संबंधित बेल या पेड़ के पास जाए और सब्जियां लेकर सीधे अपनी किचन टेबल पर पहुंचकर उस दिन के लंच या डिनर के लिए अपने प्रयोग शुरू कर दें। जरा कल्पना कीजिए कि पेड़ से सब्जियां तोड़ते हुए आपके बच्चे आपको देख रहे हैं! कोयम्बटूर के बाहरी हिस्से में राष्ट्रीय राजमार्ग पर एक बड़ा-सा रंगीन साइनबोर्ड इस फार्म की मौजदूगी की घोषणा करता है। वहां आपके अौर मेरे जैसे आम लोगों को मेहनत करते देखी जा सकता है। 
बारह प्रकार का पालक, कई प्रकार की स्ट्राबेरी, जुचिनी, गोभी और कई अन्य सब्जियों के साथ विश्वनाथ हर तरह की रेसिपी बताते हैं। उनका मानना है कि जब लोग खेती की अनिश्चितताएं देखते हैं तो मिट्‌टी के साथ रिश्ता बन जाता है, जो अपने आप भोजन की थाली से जुड़ जाता है। 
फंडा यह है कि कहानीकहने वालों को भुला दिया जाता है, लेकिन कहानी बनी रहती है। ऐसी कहानियां रचें, जो हमारे बाद भी जीवित रहे। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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