Wednesday, December 7, 2016

बचपन के अनुभव रखते हैं व्यक्तित्व की बुनियाद (दिवंगत नेत्री जयललिता के सन्दर्भ में एक आर्टिकल)

मैनेजमेंट फंडा (एन. रघुरामन)
वह बहुत छोटी बच्ची थी। सिर्फ दो साल की। यह देखने के लिए कि जो हाथ उसे थामते थे, जो उसके साथ खेलते थे, जो उसके लिए खिलौने लाते थे, वे हाथ चेतनाहीन हैं। ये हाथ उस बच्ची के पिता के थे। आसपास जमा लोग कह रहे थे कि उनकी मौत हो गई है। बच्ची को तो यह भी नहीं पता था कि मौत का मतलब क्या होता है, लेकिन
जब लोगों ने उसे बताया कि वे फिर कभी उसे अपनी गोद में खिलाने नहीं आएंगे तो यह अहसास उसे बार-बार सताने लगा। वह पूरी तरह अपनी सुंदर मां पर निर्भर हो गई। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। शुरू में जब मां ने आर्थिक सहारे के लिए उसके दादा के शहर बेंगलुरू में जॉब करने का फैसला किया तो उसे थोड़ा एडजस्ट करना पड़ा, लेकिन जब मां ने एक्टिंग कॅरिअर के लिए उसे आंटी के पास बेंगलुरू में छोड़कर चेन्नई जाने का फैसला किया, तो बच्ची इस अकेलेपन को सह नहीं सकी। कई दशकों बाद हमारे बच्चे वीकेंड पैरेंट्स के कॉन्सेप्ट को समझते हैं, लेकिन इस बच्ची ने तब इसे अनुभव किया था। उपहार मां के समय की पूर्ति करने के लिए दिए जाते, लेकिन बच्ची हमेशा मां चाहती, उपहार नहीं। 
चार साल बाद मां ने कुछ पारिवारिक कारणों से बच्ची को अपने साथ मद्रास लाने का फैसला किया, लेकिन बच्ची की खुशी थोड़े दिन ही टिकी, क्योंकि मां को हमेशा शूटिंग के लिए बाहर ही रहना पड़ता था। हर बच्चे की तरह वह भी क्लास की अपनी उपलब्धियों के बारे में मां को बताना चाहती थी। एक दिन बच्ची मां को अपना लिखा निबंध 'मेरी मां' दिखाना चाहती थी। निबंध को पहला पुरस्कार मिला था और स्कूल में टीचर ने सभी बच्चों के बीच इसे पढ़ा था, इसलिए बच्ची का उत्साह दोगुना था। बच्ची घर आई और मां का इंतजार करने लगी। इंतजार एक-दो घंटों में खत्म नहीं हुआ, बल्कि दो दिन चला। मां आधी रात को घर लौटी। आंसुओं के बीच मां ने वादा किया कि फिर कभी ऐसा नहीं होगा। किंतु जल्दी लौटने का वादा बार-बार, लगातार टूटता रहा और बाल मन इसे समझ नहीं सका। उन दिनों ब्राह्मण परिवारों में सिनेमा को वर्जित माना जाता था, इसलिए इस बच्ची का कोई दोस्त नहीं था। वे त्यागराज नगर, जिसे टी नगर के नाम से भी जाना जाता है के प्रतिष्ठित इलाके में रहते थे, जहां अधिकतर तमिल ब्राह्मण परिवार रहते हैं। कुल-मिलाकर अकेलेपन ने उसे घेर रखा था। 
बहुत कम उम्र में उसकी एक मात्र सहेली ने उसे धोखा दे दिया। यह सहेली एक लड़के के साथ दोस्ती के मामले में पकड़ी गई तो उसने इस बच्ची पर इसका दोष लगा दिया। कारण यह था कि लड़का बच्ची के घर से दो घर छोड़कर रहता था और इस तरह उसे धोखे का मतलब पता चला। फिर बच्ची ने खुद पर ध्यान लगाया और ऐसी लड़की के रूप में बड़ी हुई, जिसे कई भाषाओं में दक्षता हासिल थी। लहजा, स्टाइल और खुद को एक अलग अंदाज में पेश करना उसका पैशन बन गया। कोई भी दावे से यह नहीं कह सकता कि बचपन की इन कुछ घटनाओं ने इस बच्ची के एक मिडिल क्लास परिवार से राज्य की प्रथम महिला बनने में क्या भूमिका निभाई, लेकिन कोई भी इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि सेल्वी जयराम जयललिता कुछ ही लोगों पर भरोसा करती थीं और अति महात्वाकांक्षी थी और राजनीति में उन्हें जो महत्व मिला उसे बहुत पंसद करती थीं। वासंती द्वारा लिखी बायोग्राफी पढ़ना काफी दिलचस्प है, जो अभी पूर्ण नहीं है, हालांकि सोशल नेटवर्किंग साइट पर यह काफी चल रही है। इसका नाम है- "अम्मा: जयललितास जर्नी फ्रॉम मूवी स्टार टू पॉलिटिकल क्वीन"
इसमें दिवंगत नेता के शुरुआती जीवन, सिनेमा और फिर राजनीति में आने की कुछ अनूठी कहानियां हैं। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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