Monday, January 23, 2017

मैनेजमेंट: धन के लिए आधुनिक महाभारत के अभिमन्यु कभी बनें

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
इस शनिवार मुंबई जाने वाली फ्लाइट फुल थी। अपनी विंडो सीट पर बैठने के बाद मैंने लैपटॉप शुरू किया अौर एक युवक ने आकर अपना बड़ा भारी हैंडबैग धम्म से रखा, जिससे आसपास सबको हिलाकर रख दिया। दूसरों
को पहुंचे व्यवधान से उसके चेहरे पर कोई शिकन नहीं आई। वह अपनी ही दुनिया में खोया था। साफ-सुथरा वह युवक अच्छे पद पर लगता था। उसने बीच की सीट पर बैठते हुए मुझ पर कुछ ऐसी दृष्टि डाली, जिसका मतलब था,'क्या मुझे कोने की विंडो सीट मिल सकती है?' चूंकि मैं काम कर रहा था तो मैंने उस दृष्टि को स्वीकारने से इनकार कर दिया। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। उसने खुद का परिचय देते हुए बताया कि वह बेंगुलुरू में सॉफ्टवेयर इंजीनियर है और अच्छी वेशभूषा लुक्स वाला वह युवक यह अनुरोध करने के बाद एक मिनट में ही नींद के आगोश में चला गया कि दो घंटे की उड़ान के दौरान जब भोजन आए तो मैं उसे जगा दूं। मुझे अब समझ में आया कि वह विंडो सीट क्यों चाहता था ताकि शांति से कुछ नींद ले सके। बीस मिनट बाद ही भोजन गया। एयर होस्टेस ने उसे जगाने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रही। फिर उसकी अगली सीट पर कॉमिक्स पढ़कर मन ही मन हंस रहे उसी की तरह के ओडिशी युवक ने उसे जबर्दस्ती जगाया। उससे मुझे बरसों पहले स्कूल जाने वाली मेरी बेटी को जगाने की याद आई। उस जमाने में उसे उठाने में भी कुछ इसी तरह की मशक्कत करनी पड़ती थी। 
थोड़े शर्मिंदा-से दिख रहे उस युवक ने ओडिशा के युवक से कहा,'सॉरी, मैं जरूरत से ज्यादा काम से मारे, नींद से महरूम आईटी पेशेवर में से हूं।' मैंने दखल देते हुए कहा, 'मैं समझा नहीं।' उसने जल्दी से 'इंडियन जर्नल ऑफ आक्यूपेशनल एंड एन्वायरनमेंटल मेडिसीन' पत्रिका निकाली और मुझे एक लेख दिखाया। हाल ही में कराए एक अध्ययन पर आधारित लेख में कहा गया था कि कैसे टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में काम कर रहे बहुत सारे युवा तनाव झेलने को तैयार रहते हैं, क्योंकि उनका पेशा जीवन की उत्तम गुणवत्ता सुनिश्चित करता है। संक्षेप में यदि पैसा अच्छा मिल रहा है तो उन्हें हम्माली करने में कोई आपत्ति नहीं है। कॅरिअर खासतौर पर आईटी और आईटी संचालित सेवाओं में विकल्पों में बदलते स्वरूप पर नज़रिया पेश करते हुए बेंगुलरू के पब्लिक हैल्थ फाउंडेशन और एनआईएमएच के डॉक्टरों की टीम द्वारा किए अध्ययन से पता चला है कि अपने परिवारों के लिए बेहतर जिंदगी की खातिर ये प्रोफेशनल अत्यधिक तनाव भी झेलने को राजी हैं। इन डॉक्टरों ने आईटी और आईटीईएस क्षेत्र के 2 से 59 वर्ष आयु वर्ग के 1,071 पेशेवरों का अध्ययन किया था। सामजिक जनसंख्यागत कारक, व्यक्तिगत अनुभव, कामकाज के वातावरण की गुणवत्ता, घर कार्यस्थल पर तनाव का अनुभव, हाईपरटेंशन को लेकर जागरूकता, घर पर उनके व्यवहार और स्वास्थ्यगत गड़बड़ियों जैसे 32 वि‌भिन्न मुद्‌दों पर उनके इंटरव्यू लिए गए थे। उनके जवाब के आधार पर अंक दिए गए और उसकी तुलना विश्व स्वास्थ्य संगठन के क्वालिटी ऑफ लाइफ बीआरईएफ मानकों से की गई ताकि मानव जीवन की गुणवत्ता पर विभिन्न रोगों के असर का पता लगाया जा सके। 
55 फीसदी के बड़े तबके में भौतिक जीवन की साधारण गुणवत्ता पाई गई। धक्कादायक तथ्य तो यह था कि 53 फीसदी युवा वीकेंड पर भी काम कर रहे थे और इससे उनके सामाजिक जीवन पर असर पड़ रहा था। 64 फीसदी रोज आठ घंटे से ज्यादा काम कर रहे थे और उनका पारिवारिक जीवन शून्य था। अध्ययन के मुताबिक ये पेशेवर कुछ ही क्षेत्रों में प्रशिक्षित थे और उन्हीं क्षेत्रों का अनुभव रखते थे लेकिन, उनके मैनेजर या कंपनियां उन्हें अपरिचित क्षेत्रों में काम करने पर मजबूर करती हैं। इससे अपनी , क्षमताओं को लेकर उनमें हीनभाव पैदा होकर अनावश्यक तनाव का कारण बन रहा है। इस तरह वे खुद तो नाखुश हैं ही, अपने आसपास भी वैसा ही वातावरण बना रहे हैं। अध्ययन से स्पष्ट है कि आधुनिक युवा की गुणवत्तापूर्ण जीवन की धारणा में कुछ गलत है। कौन-सी चीजें जीवन को गुणवत्तापूर्ण बनाती है, इस पर सोचने ने की जरूरत है। ओडिशा के आदमी ने कहा, 'जीवन की गुणवत्ता का मतलब है आप कितना हंसते हैं, यह नहीं कि कितना इकट्‌ठा करते हैं।' हम दोनों को देख रहे आईटी प्रोफेशनल ने लाचारी की मुस्कार बिखेरी और विमान के उतरने के साथ फ्लाइट से उतर गया। मैंने आधुनिक 'महाभारत' का अभिमन्यु देखा, जो नहीं जानता कि पैसे-भौतिकवाद के इस चक्रव्यूह से कैसे बाहर आए। 
फंडा यह है कि भौतिक फायदों के लिए सौदेबाजी किए बगैर जीवन की गुणवत्ता को महत्व दीजिए। 

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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