Monday, February 20, 2017

लाइफ मैनेजमेंट: बड़े सामाजिक मुद्‌दों को 'कम्युनिटी फोर्स' से सुलझाएं

मैनेजमेंट फंडा (एन. रघुरामन)
बिश्वनाथ बराडवहां के हजारों किसानों में से एक थे। आमतौर पर भोजन के समय पूरा परिवार साथ आता और फिर परिवार के फैसले मिल-जुलकर किए जाते। एेसे ही एक दिन किचन में बैठे परिवार ने अपनी खेती के लिए
कुछ ऑर्गनिक चीजें खरीदने का फैसला किया। पिता ने बेटे से कहा, 'बेटा जाकर देखो तो कि क्या बाहर 'थेंगा पल्ली' है।' बेटा बाहर जाकर देखता है और आकर बताता है, 'नहीं।' फिर पिता उसे अगले दिन शहर जाने की इजाजत देते हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। 'थेंगा पल्ली' का मतलब है 'बारी-बारी से छड़ी।' ओडिशा के नवागढ़ जिले के 900 गांवों का हर गांव इस तकनीक का प्रयोग करता है। इसके मुताबिक घर के बाहर यदि छड़ी मिले तो परिवार का एक सदस्य इन 900 गांवों में फैली 1000 एकड़ वन्य भूमि में गश्त लगाने जाता है। हर गांव रोज कम से कम 10 लोगों को गश्त पर भेजता है, जो पेड़ काटने वाले घुसपैठियों का पता लगाते हैं। उन्हें रोकता है और किसी अवैध कार्रवाई में लगा हो तो उसे पकड़ कर वन विभाग के हवाले कर देता है। कई बार मुठभेड़ जैसी हालत हो जाती है लेकिन, ये बहादुर गश्ती दल तस्करों को खदेड़ ही देता है। उनकी इस सेवा के बदले गश्ती दल को अपने परिवार के लिए सूखी टहनियां, फल, बीज और फूल इकट्‌ठा करने पर कोई रोक नहीं है, क्योंकि वैसे भी इन गांवों के लोग पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना ही वनोपज का उपयोग करते हैं। 
इस विधि से सिर्फ वे हरियाली को कायम रख पाते हैं बल्कि प्रकृति से भी अधिकतम लाभ ले पाते हैं। दिनभर गश्त लगाने के बाद यह सदस्य छड़ी को पड़ोस के घर के बाहर रख देगा, जिससे उसे मालूम पड़ जाएगा कि अगले दिन जंगल की रक्षा करने का दायित्व उसका है। कोई बैठक और कोई नोटिस जैसी कोई कागजी कार्रवाई। इस साधारण-सी युक्ति से यह सिस्टम बखूबी काम कर रहा है, क्योंकि पर्यावरण रक्षा के लिए हर व्यक्ति प्रतिबद्ध है। गांव के हर व्यक्ति को पूरे साल में 14 से 18 दिन लकड़ी के तस्करों से जंगलों को बचाने के लिए देने पड़ते हैं। इन गुमनाम से गांवों में हरियाली बचाने के लिए सामुदायिक शक्ति का प्रयोग तब से हो रहा है, जब वन्य संरक्षण अधिनियम, 1980 लागू भी नहीं हुआ था। यही कारण है कि क्षेत्र की घांटुलेई और मातीगडिया पहाड़ियों में लकड़ी का कोई तस्कर घुसने की हिम्मत नहीं कर सकता, क्योंकि गांव वाले चौबीसों घंटे बहुत सतर्क और सक्रिय रहते हैं। जाहिर है जब किसी सामुदायिक समस्या के प्रति लोग जागरूक होते हैं तो सरकार के कदम उठाने का इंतजार करते बैठे नहीं रहते। 
ग्रामीण वन संरक्षण परिषद, महासंघ द्वारा बनाए कुछ नियमों का पालन करवाती है। महासंघ से सारे गांवों के सरपंच और सदस्य जुड़े हैं। ये महासंघ 30 जिलों का प्रतिनिधित्व करता है। उसके बनाए नियमों का सभी परिवार पालन करते हैं। हर परिवार के लिए 'थेंगा पल्ली' में भाग लेना अनिवार्य है। किसी दिन यदि कोई गश्त की ड्यूटी दे पाए तो परिवार को पैसे देकर किसी व्यक्ति की व्यवस्था करनी पड़ती है लेकिन, वह गांव के इस नियम से बच नहीं सकता। यह व्यवस्था किसी को बहानेबाजी का मौका नहीं देती और इससे गश्त के काम में कभी कहीं ढिलाई नहीं आती। 
बिश्वनाथ और उनके जैसी सोच रखने वाले 20 लोगों ने इसकी शुरुआत 1970 में कर दी थी, जब उनके ध्यान में यह बात आई कि तस्करों के कारण लकड़ी अन्य वन्य उपज में खतरनाक कमी आती जा रही है। तस्करों ने हिंसा का सहारा लिया और इसमें कुछ ग्रामीणों की जानें भी गईं जैसा 31 दिसंबर 2012 को हुआ था। फिर भी सामुदायिक गश्त अविचलित जारी रही ताकि भावी पीढ़ी के लिए वनों को सुरक्षित रखा जा सके। 
लाठी लहराने वाले सामुदायिक गश्ती दल ने सिर्फ पहाड़ी के चारों ओर मौजूद साल वृक्षों के कालीन को बचाया है बल्कि सैकड़ों पेड़ों को नया जीवन भी दिया है। आज दुनियाभर से सैकड़ों शोधकर्ता नवागढ़ में बिना हथियार वाले समस्या समाधान मॉडल का अध्ययन करने आते हैं। इन ग्रामीणों में पर्यावरण के प्रति बढ़ती जागरूकता और महासंघ के नियमों को स्वैच्छा से स्वीकार करने को ये शोधकर्ता हजारों एकड़ में फैले समुदाय में हुए सांस्कृतिक परिवर्तन के रूप में देखते हैं, जो अपने आप में दुर्लभ घटना है। तीस से ज्यादा वर्षों में इस संरक्षण संहिता ने हमेशा स्करों को चौंकाया है। गश्ती दल जिस तरह से पूरे गांव को सतर्क कर और अधिक लोगों को बुलाता है उसने तस्करों को हमेशा भागने पर मजबूर किया है। 
फंडा यह है कि ग्रामीणों का छोटा दल वह काम कर सकता है, जिसमें संरक्षण बल कभी कभी नाकाम हो जाता है, क्योंकि एकजुटता से वह ताकत बनती है, जिससे पार पाना मुश्किल होता है। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com

साभार: भास्कर समाचार 
For getting Job-alerts and Education News, join our Facebook Group “EMPLOYMENT BULLETIN” by clicking HERE. Please like our Facebook Page HARSAMACHAR for other important updates from each and every field.