Saturday, February 18, 2017

लाइफ मैनेजमेंट: नैतिक मूल्यों की शिक्षा को खुद भी कड़ाई से अपनाएं

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
ग्यारह साल के बालक के रूप में मैं वह घटना भूल नहीं सकता, जो अब भी उधार लेने से मेरी रक्षा करती है। वह बुधवार का दिन था- बिनाका गीतमाला का दिन और मेरे पसंदीदा अमीन सयानी मुझे बॉलीवुड के टॉप 16
लोकप्रिय गीत अपनी अनोखी शैली में सुनाते- अब 16वीं पायदान पर..। उन दिनों को मेरा होमवर्क और रात का भोजन रेडियो सिलोन पर 8 बजे यह कार्यक्रम शुरू होने के पहले ही हो जाते। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। मैं रेडियो शुरू करने वाला ही था कि मेरी मां किचन से बाहर आईं और मुझे 10 पैसे के दो सिक्के देते हुए कुछ लाने को कहा। मैं चिढ़ गया अौर जाने से इनकार किया लेकिन, उन्होंने प्यार से देखते हुए कहा, 'प्लीज़,' फिर मैं और इनकार नहीं कर सका। 
मैंने तेजी से नीले रंग की यूनिफॉर्म वाली नेकर पहनी, जिसकी जेब में छेद था, क्योंकि मैं उसमें चुपके से कंचे ले जाता था। मैं दुकान की ओर तेजी से दौड़ा लेकिन, वहां जाकर पता चला कि दोनों सिक्के कहीं गिर गए हैं। दुकानदार हमारे परिवार को जानता था। जब मैंने उसे सिक्के गुम होने की बात बताई तो उसने चीजें दे दीं। मैं धीरे-धीरे घर आया, इस उम्मीद में देखते हुए कि शायद सिक्के मिल जाए। मेरे कान तो रेडियो की ओर लगे थे, जो 14वां गीत सुना चुका था। मैंने अपनी नाकामी छिपाने के लिए मां को ही दोष देना शुरू किया, 'यह सब आपके कारण हुआ।' अपने कागजी काम में लगे पिताजी ने यह बातचीत सुनी और मुझसे पूछा, 'यदि तुमसे पैसे खो गए तो दुकानदार ने तुम्हें चीजें दी कैसे?' मैंने बताया कि वह मुझे जानता है, इसलिए दे दी। 
उन्होंने शर्ट पहनी, मेरी बांह पकड़ी और मुझे फिर दुकान पर ले गए। रास्ते में जाते हुए मैं अन्य घरों से जोर से आती अमीन सयानी का आवाज सुन रहा था, जो अब 11वीं पायदान पर पहुंच चुके थे। मैं बहुत ही विचलित था कि यह भी कैसा मनहूस बुधवार रहा। मेरे पिताजी का समाज में बहुत आदर था। जैसे ही दुकानदार ने मेरे साथ आगबबुला पिताजी को देखा, उसने सौम्य लहजे़ में कहा, 'सर, बच्चे कभी कभी सिक्के गिरा देते हैं।' मेरे पिताजी ने उसे रोका। संकेत साफ था कि तुम्हारी सलाह बहुत हो गई, 'आपने बिना पैसे के चीजें दी कैसे।' दुकानदार ने कहा, 'क्या साहब, मैं क्या जानता नहीं कि यह आपका बेटा है?' 
मेरे पिताजी बहुत विचलित थे। उन्होंने कहा, 'क्या आप यह कहना चाहते हैं कि आप मेरे पूरे परिवार को कितनी भी रकम का उधार देंगे?' दुकानदार चुप रहा। मेरे पिताजी ने दस पैसे के दो सिक्के निकालते हुए दुकानदार को दिए और कहा, 'मेरे परिवार को उधार कभी मत देना वरना मैं यहां आना बंद कर दूंगा।' उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और सिर उठाकर घर की ओर लौट पड़े। उस दिन मैंने राजेश खन्ना को मेरा हाथ पकड़कर तनकर चलते देखा, क्योंकि तब तक अमिताभ फिल्मों में आए नहीं थे। मेरे पिता मुड़े और मुझसे कहा, 'जिंदगी में एक चीज याद रखो, यदि ज्यादा जरूरी हो तो कभी उधार मत लो।' मैंने अपना सिर हिलाया, जैसे मैंने जिंदगी का सबसे महत्वपूर्ण सबक ले लिया है। मैं तेजी से बिनाका गीतमाला सुनने दौड़ा और तब अमीन सयानी कह रहे थे,'सबसे ऊपर की पायदान पर आज..' लेकिन मेरे पिताजी को पूरा भरोसा था कि मैं समझ गया हूं। मैंने उनकी पूरी जिंदगी में कभी उन्हें उधार लेते नहीं देखा। वे हमेशा अपने आर्थिक संसाधनों के भीतर ही जिंदगी जिए। आज भी 500 लोगों की सोसायटी में दूध वाले या पेपर वाले जैसे वेंडर कभी महीने की पहली तारीख पर मेरा दरवाजा नहीं खटखटाते, क्योंकि उन्हें एडवांस में ही पैसा मिल जाता है। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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