Sunday, August 20, 2017

कैंसर, हार्टअटैक जैसी 7 बीमारी में वसूल रहे हैं 600% तक ज्यादा पैसा

बिहार में रहने वाले 70 वर्षीय छोटे नारायण ने दिल्ली के एम्स में अपनी बायपास सर्जरी करवाई थी। वे प्राइवेट वॉर्ड में थे, बावजूद इसके उनका कुल बिल अस्पताल ने सवा लाख रुपए का बनाया था। जबकि यही सर्जरी किसी प्राइवेट अस्पताल में करीब 5 से 7 लाख रुपए में होती है। यह तो एक बानगी है, करीब-करीब सभी बड़ी बीमारियों में सरकारी
और प्राइवेट अस्पतालों में खर्च का अंतर ऐसा ही दिखता है। जीएसटी लगने के बाद से इलाज और महंगा हो गया है। जबकि जब भास्कर ने देश के बड़े डॉक्टर्स से बात की तो उन्होंने कहा कि कुछ गंभीर बीमारियों के इलाज अभी और सस्ते किए जा सकते हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। मेदांता मेडिसिटी अस्पताल के एमडी और चेयरमैन डॉ. नरेश त्रेहान कहते हैं कि इम्प्लांट की अधिकतम कीमत को नियंत्रित करना सरकार की अच्छी पहल है। पारदर्शिता जरूरी है। सरकार की ओर से हर इम्प्लांट और इक्यूपमेंट पर 15 से 20% तक हैंडलिंग चार्ज फिक्स करना चाहिए। कई इम्प्लांट की कीमत तो अस्पताल और चिकित्सक को भी नहीं पता होती। जिसकी वजह से कंपनी जो रेट बताती है उसी कीमत पर खरीदना पड़ता है। इसका भुगतान मरीजों को करना पड़ता है।
कैसे तीन और गंभीर बीमारियों में हो रहा है महंगा इलाज:
  • बाय पास सर्जरी - अभी 5 गुना सेे ज्यादा कर रहे हैं चार्ज: भारतसरकार के स्वास्थ्य महानिदेशक और हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ.जगदीश प्रसाद का कहना है कि बाइपास सर्जरी में कंज्युमेबल आइटम्स को मिला कर 1.25 लाख रुपए का खर्च आता है। यदि अस्पताल के कुछ अन्य खर्च जोड़ दिए जाएं तो भी बायपास सर्जरी के लिए दो लाख से ज्यादा का चार्ज नहीं किया जाना चाहिए। इसके बावजूद निजी अस्पताल बायपास सर्जरी के लिए पांच से सात लाख रुपए तक चार्ज कर देते हैं। यदि इसमें आईसीयू में रुकने की अवधि ही डॉक्टर्स इमानदारी से तय कर दें तो यह सर्जरी डेढ़ लाख रुपए तक में हो जाएगी। 
  • कैंसर - इसकी दवाइयां 600 फीसदी तक महंगी बिक रही हैं: इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. केके अग्रवाल बताते हैं कि कैंसर की कुछ दवाइयां ऐसी हैं जिस पर लागत से 400 से 600% तक कीमत बढ़ा कर मरीजों को दी जाती है। एक तय कीमत निर्माता, रिटेलर और डिस्ट्रीब्यूटर्स के लिए जरूरी है। सिद्दांता रेडक्राॅस हॉस्पिटल भोपाल के डॉ. सुबोध वार्ष्णेय बताते हैं कि कैंसर के मरीजों को मेटेलिक एक्सपेंडेबल स्टेंट लगाया जाता है। यह स्टेंट हॉस्पिटल काे कंपनी 45 हजार रू. में सप्लाई करती है। हॉस्पिटल 75 हजार से लेकर 1 लाख रू. तक वसूलते हैं।
  • पेस मेकर - सब मिलाकर 450 फीसदी महंगा हो रहा है इलाज: अपोलो के कार्डियोथोरासिस और वैस्कुलर सर्जरी के सीनियर कंसल्टेंट डॉ.मुकेश गोयल का कहना है कि पेस मेकर की कीमत 2-2 लाख रु. तक है, जबकि इसकी मैन्यूफैक्चरिंग कॉस्ट करीब आधी है। सरकार अधिकतम मूल्य तय कर दे तो कीमत कम होगी। जयपुर के डाॅ जितेन्द्र मक्कड़ बताते हैं कि पेसमेकर, कृत्रिम वॉल्व पर कंपनियां 120 से 300% तक प्रॉफिट मार्जिन रखती हैं। जबकि अस्पतालों में ओटी, सर्जन बेड चार्ज को मिलाकर पूरे इलाज का खर्च 450% तक महंगा हो जाता है। 
  • आंखों के लेंस - 600 रु. वाला लेंस लगता है 9 हजार रु. में: रायपुर के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. दिनेश मिश्रा का कहना है कि मोतियाबिंद के बाद आंख में लगाए जाने वाले लेंस की कीमत पर भी कोई नियंत्रण नहीं है। 600 से लेकर एक लाख तक का लेंस बाजार में उपलब्ध है। डाक्टर अलग-अलग तरह की विशेषता बताकर मुंहमांगी कीमत वसूल रहे हैं। इसमें अस्पताल वालों के साथ डीलरों को भारी मुनाफा हो रहा है। जबकि जो लेंस आज मरीजों को 8-9 हजार रुपए में लगाया जा रहा है उसकी वास्तविक कीमत 600 रुपए होती है, अस्पताल का खर्च और डाॅक्टर की फीस जोड़ भी लें तो मरीजों से करीब दोगुना वसूल रहे हैं। 
  • हिप इम्प्लांट - खर्च आधा किया जा सकता है: दिल्ली के इन्द्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के सीनियर कंसलटेंट डॉ. यश गुलाटी कहते हैं कि सरकार को हिप फ्रैक्चर इम्प्लांट और बोन सीमेंट की कीमतें भी कम करनी चाहिए। ह्पि इम्प्लांट के लिए भी मरीज को 1.25 लाख रु. से 1.5 लाख रुपए तक चुकाने पड़ते हैं, इसकी कीमत करीब-करीब आधी की जा सकती है। क्योंकि देश में निर्मित आर्टिफिशियल इम्प्लांट की कीमत 35 हजार रुपए से शुरू हो जाती है जो 50 हजार रु. तक है। इसलिए कीमते कम करने का मार्जिन बहुत है। देश में प्रति वर्ष करीब 50 हजार लोग हिप प्रत्यारोपण कराते हैं। 
  • स्पाइन स्क्रू: 2 हजार वाले स्क्रू पर वसूलते हैं 15 हजार रुपए तक: डॉ.यश गुलाटी बताते हैं कि स्पाइन स्क्रू की कीमतों पर अंकुश लगाना बहुत जरुरी है। विदेश से भारत आने वाले एक स्क्रू की कीमत 12 से 15 हजार होती है जबकि इसकी कीमत 5 हजार से अधिक नहीं होनी चाहिए। स्पाइन सर्जरी में एक मरीज में तीन से चार स्क्रू लगते हैं। कई बार मरीजों में 10 से 12 स्क्रू लगाने पड़ते हैं। देश में निर्मित स्क्रू की कीमत दो से चार हजार रुपए है। ऐसे में इसमें कीमतंे कम करने की बहुत गुंजाइश है।
  • न्यूरोसर्जरी - ग्लू केमिकल पर लेते हैं मनमानी कीमत: एम्सके न्यूरो सर्जरी विभाग के प्रो.दीपक अग्रवाल का कहना है कि न्यूरो सर्जरी में कुछ ऐसे केमिकल्स का इस्तेमाल होता है जिसकी ज्यादा कीमत वसूल की जाती है। करीब-करीब हर न्यूरो सर्जरी में ग्लू नामक केमिकल का इस्तेमाल होता है। एक मिलीलीटर की कीमत 15 हजार रु. तक चार्ज की जाती है जबकि इस पर एमआरपी नहीं लिखी होती। करीब-करीब सभी ब्रेन सर्जरी में 2 से 3 एमएल ग्लू इस्तेमाल होता है। 

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साभार: भास्कर समाचार 
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