Saturday, August 19, 2017

जीवन प्रबंधन: अपनी इंद्रियों की रक्षा करके 'बुराइयों को हराइए

एन. रघुरामन (मैनेजमेंटगुरु)
महाभारत की एक कहानी है। कुरुक्षेत्र के युद्ध का सार समझाते हुए एक संत ने संजय से कहा- पांडव पांच इंद्रियों की तरह हैं, जो 100 बुराइयों (कौरव) से लड़कर जीत सकते हैं; जब आपके मन का रथ ईश्वर (अास्था) चलाता
है। कहानी कर्ण को कामना के समान बताती है। वे लगातार जीवनभर सफाई देते रहते हैं और इंद्रियों के स्थान पर बुराइयों का साथ देने पर जोर देते हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। मेरे लिए यह कम चर्चित कहानी अनमोल है, क्योंकि अप्रत्यक्ष रूप से यह कहती है कि अगर जीवन के किसी स्तर पर आपको लगे कि समस्या डरा रही है तो अपने भीतर देखिए। अगर आपको लगे कि बुराइयां हमला कर रही हैं तो इन्हें दूर करना जरूरी है और फिर जरूरत हो तो परिस्थितियों पर विजय पाने के लिए शत्रुओं पर हमला कीजिए। अपने भीतर देखने की इस थ्योरी या इसके कुछ हिस्से को मेडिकल ट्रीटमेंट पर लागू करने या इस थ्योरी में थोड़ा-सा विज्ञान जोड़ देना निश्चित रूप से कोई नई बात नहीं है, लेकिन फिर भी बहुत कम लोग ऐसा करते हैं। 
स्टोरी 1: भुवनेश्वरके सत्य नगर के उन दो कमरों को देखकर पहली नज़र में आपको लगेगा कि यह कोई प्ले स्कूल है, जहां सभी आयु वर्ग के लोग कुछ अजीब गतिविधियों में लगे हैं। लेकिन ध्यान से देखने पर पता चलेगा कि वे आंखों के लिए योगा कर रहे हैं। भाग लेने वाले किसी केंद्र की ओर एकटक देख रहे हैं या फिर अपनी आंखों की पुतलियों को एक खास अंदाज में घुमा रहे हैं। ये लोग ग्लूकोमा, मोतियाबिंद, मायोपिया, कलर ब्लाइंडनेस या प्रेस्बायोपिया के मरीज हैं। दो महीने की नियमित एक्सरसाइज के बाद क्लिनिक में मौजूद कई लोग अपनी दृष्टि में हो रहे बदलाव को महसूस भी कर रहे हैैं। प्राकृतिक चिकित्सक डॉ. गौरीशंकर गोस्वामी कहते हैं कि वे इस तरह आंखों की ताकत नहीं बढ़ा रहे हैं, बल्कि एक्सरसाइज से दृष्टि ठीक कर रहे हैं। यह व्यायाम हमारे देश में लंबे समय से मौजूद है। हालांकि आसन कई तरह की बीमारियों का इलाज कर सकते हैं, लेकिन कुछ ही लोगों ने इसे जनता की जानकारी में लाने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली और लोगों की मदद की है। नज़र संबंधी कई समस्याएं आंखों की मांसपेशियों में व्यायाम की कमी के कारण होती हैं। व्यायाम की कमी से खून के संचार में रुकावट अाती है। इसे किसी प्रशिक्षित व्यक्ति के मार्गदर्शन में ठीक किया जा सकता है। वह आपसे सुधार के लिए 60 अलग-अलग तरह के व्यायाम करवाएंगे। ऐसे क्लीनिक अहमदाबाद, सूरत, वड़ोदरा, मुंबई, चेन्नई और पुडुचेरी में लोगों को आकर्षित कर रहे हैं और सर्जरी से बचने के लिए इन्हें अपना रहे हैं। 
स्टोरी 2: केंद्र सरकार ने घुटनों के प्रत्यारोपण की कीमत 54 हजार से 75 हजार के बीच निर्धारित कर दी हैं। इससे ऑर्थोपेडिक इंप्लांट की कीमत करीब 65 प्रतिशत तक कम होगी। ऐसा नेशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी के माध्यम से हो रहा है, लेकिन कुछ एेसे लोग भी हैं जो घुटनों के प्रत्यारोपण को टालने को बढ़ावा दे रहे हैं। स्ट्रोमल वैस्क्युलर फ्रैक्शन (एसवीएफ) थैरेपी के बारे में दावा है कि यह इस तरह की इंदौर के बाद मुंबई में इस सप्ताह शुरू होने वाली पहली थैरेपी है। इस थैरेपी में 300 से 500 एमएल बॉडी फैट हटाया जाता है और इसे जोड़ों में स्थापित किया जाता है। इस बॉडी मास को अल्ट्रासॉनिक मशीन के जरिये अलग किया जाता है। इस प्रक्रिया में 90 मिनट से ज्यादा नहीं लगते। मरीज को बिना कोई चीरा लगाए उसी दिन अस्पताल से छुट्‌टी दे दी जाती है। बुरी जीवनचर्या के कारण जोड़ों का दर्द 35 से 55 साल उम्र वर्ग के युवा एग्ज़ीक्यूटिव में भी देखा जा रहा है। वैसे आमतौर पर यह 60 और इससे अधिक उम्र के वर्ग में देखा जाता है। 
फंडा यह है कि इंद्रियों और बुराइयों में संघर्ष हमेशा रहा है। यह हम पर है कि हम इस वैज्ञानिक युग में इसे किस तरह देखते हैं। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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