Sunday, August 20, 2017

जानिए उम्र कैद क्यों होती है चौदह साल की

बॉलीवुड की फिल्मों में दिखाते हैं कि कत्ल के आरोप में उम्रकैद मिली और 14 साल बाद रिहाई हो गई। आप भी सोचते होंगे कि कहने को उम्र कैद मिली, यानी मृत्यु होने तक जेल, लेकिन अपराधी महज 14 साल
में जेल से बाहर कैसे आ गया। फिर उम्रकैद का औचित्य क्या रहा। जानिए इसके पीछे की वजह और सच्चाई कि आखिर उम्रकैद कितने साल की होती है।
इस संबंध में एडवोकेट विराग गुप्ता, सुप्रीम कोर्ट ने विस्तृत जानकारी दी है। उन्होंने बताया कि दरअसल संविधान में कहीं नहीं लिखा कि उम्रकैद 14 की होगी। देश की हर अदालत आरोप साबित होने के बाद ये तय करती है कि अपराधी को उम्रकैद मिले या कोई और सजा। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। सन् 2012 में सुप्रीम कोर्ट अपने निर्णय से यह स्पष्ट कर चुका है कि आजीवन कारावास का मतलब जीवनभर के लिए जेल है और इससे ज्यादा कुछ नहीं। कोर्ट ने इसकी और अधिक व्याख्या करने से इनकार करते हुए कहा कि उम्रकैद का मतलब उम्रभर के लिए जेल।
ये है असली वजह: अदालत का काम सजा सुनाना है और उसे एक्जीक्यूट करना मतलब लागू करना राज्य सरकार के हाथ में है। सुप्रीम कोर्ट कहता है कि ये राज्य सरकार के अधिकार में आता है कि वो उम्रकैद के आरोपी को 14 साल में रिहा करे, 20 साल में या ताउम्र जेल में रखे या मौत होने तक जेल में रखे। संविधान में सीआरपीसी की धारा-433 ए के तहत राज्य सरकार को यह अधिकार मिला हुआ है कि वह कैदियों की सजा कम कर सकती है या निलंबित कर सकती है। चूंकि कैदी राज्य सरकार की निगरानी में होता है इसीलिए सरकार पर यह जिम्मा है कि वो किन परिस्थितियों में कैदी को कितने साल में रिहा कर दे।
सबसे बड़ी बात - उम्र कैद 15 साल, 30 साल या हमेशा के लिए हो सकती है लेकिन 14 साल से कम नहीं हो सकती। इतना संविधान के द्वारा तय किया गया है कि राज्य सरकार ये सुनिश्चित करे कि उम्रकैद पाया अपराधी 14 साल से पहले रिहा न हो। 14 साल के बाद सरकार उसके चाल चलन, बीमारी, पारिवारिक मुद्दों को ध्यान में रखते हुए उसे कभी भी रिहा कर सकती है। पर इसका यह मतलब नहीं है कि सभी मामलों में आजीवन कारावास 14 वर्ष के लिए होता है। यदि अपराधी को जेल से बाहर निकलने की उम्मीद नहीं हो तो वह परिवार, समाज और सरकार सभी पर बोझ बन जाता है। आजीवन कारावास को मौत तक जेल में रखने के विरोधियों का यह कहना है कि इसकी बजाय मौत की सजा ज्यादा बेहतर है।
कई बार जेल में कैदियों की अधिकता की वजह से या किसी त्योहार पर सजा माफी के चलते भी उम्र कैद के अपराधी रिहा हो जाते हैं। कुछ समय पहले सुप्रीम कोर्ट खास त्योहार पर बड़ी संख्या में रिहाई पर रोक लगा चुका है।
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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