Monday, August 21, 2017

नई पीढ़ी तोहफे में कोई वस्तु नहीं, साफ पर्यावरण चाहती है

N. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी तो पहले ही शहरों में रह रही है और अनुमान है कि 2050 तक और 2.5 अरब लोग शहरों में पहुंच जाएंगे। जिस तरह से हम नए शहरों का निर्माण करेंगे वह उन सारे मुद्‌दों के केंद्र में होगा,
जो हमारे लिए महत्वपूर्ण है- जलवायु परिवर्तन से लेकर आर्थिक जीवंतता और हमारी भलाई से लेकर आपसी संपर्क जुड़ाव के अहसास तक। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। महान शहर नियोजकों में से एक पीटर कैलथॉर्प भविष्य के स्वच्छ शहरों के लिए उनके सात सिद्धांतों को अपनाने की सलाह देते हैं। मूलत: उनका मानना है कि जिस तरह से हम हमारे शहरों को आकार देते हैं वह यही बताता है कि हम किस तरह की मानवता को आकार देना चाहते हैं। इसलिए उसे ठीक करना ही आज की सुव्यवस्था है। हमारे आसपास मौजूद समस्याएं स्वतंत्र रूप से जन्म नहीं लेतीं, उसका संबंध हम और हमारी गतिविधियों से होता है। इस संदर्भ में पीटर का मानना है कि हमारा व्यवहार, आसपास के माहौल के प्रति हमारा तात्कालिक रिस्पॉन्स ज्यादा महत्वपूर्ण है। लब्बोलुआब यही है कि महत्व इस बात का है कि हम जी कैसे रहे हैं। 
पीटर के अच्छे शहरों के सात सिद्धांतों से प्रेरणा लेकर आइए पुणे की एक छोटी सार्वजनिक संस्था की कहानी जानते हैं, जो अगली पीढ़ी के लिए महान तोहफे का निर्माण कर रही है। 
पुणे की वेताल हिल 2600 फीट की ऊंचाई के साथ सिर्फ शहर का सबसे ऊंचा स्थान है बल्कि इसे न्यूयॉर्क के ख्यात सेंट्रल पार्क की तर्ज पर पुणे का फेफड़ा भी कहते हैं। यह साइकिल चलाने वालों और कुत्तों को घुमाने आने वालों के अलावा रोज सुबह सैर करने वालों, पक्षीप्रेमियों को भी आकर्षित करती है। आजकल के बारिश के दिनों में कोई भी यहां से पूरे कोथरूड क्षेत्र को देख सकता है लेकिन, आसमान साफ हो तो पहाड़ी की चोटी से पूरा पुणे नज़र आता है और यह बहुत ही खूबसूरत नज़ारा होता है। पांच साल पहले 2012 में सरकार ने हिलटॉप को अपने अधिकार में लेने का प्रस्ताव रखकर वहां थीम पार्क इत्यादि विकसित करने का इरादा जताया था। इसका बहुत कड़ा विरोध हुआ और आखिरकार सरकार को लोगों की इच्छा के आगे झुकना पड़ा। 
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि स्थानीय स्वायत्त संस्था को राजी करने में सफल रही शक्तिशाली बिल्डर लॉबी पर दवाब डालने वाली संस्था दरअसल सिर्फ एक साल पुरानी मोहल्ला समिति डेक्कन जिमखाना परिसर समिति (डीजीपीएस) थी। यह निष्क्रिय-सी संस्था थी, जो मुख्यत: आसपास के इलाके को स्वच्छ बनाए रखने के लिए बनी थी और अाज यह पुणे के ज्यादातर इलाकों में पर्यावरण संबंधी मुद्‌दों पर संघर्ष करने वाले नागरिकों के सबसे सक्रिय समूह में बदल और बढ़ गई है! यह आज सिर्फ पहाड़ी के संरक्षण की सबसे मुखर पैरोकार है बल्कि अतिक्रमण हटाने और जमीनों पर किसी शार्क की तरह झपटने वालों के इरादों को नाकाम करने वाली संस्था हो गई है साथ में उसने पूरे डेक्कन में सबसे स्वच्छ वार्ड्स होने का गौरव भी दिलाया है। 
ठोस कचरे के प्रबंधन से शुरू करके, ट्रैफिक, पानी-बिजली आपूर्ति की समस्याएं, सड़क किनारे के फर्श, सार्वजनिक बाग-बगीचों खुले स्थानों का रखररखाव, अतिक्रमण- आप किसी भी मुद्‌दे का नाम लीजिए और पाएंगे कि डीजीपीएस उस पर काम कर चुकी है। सुरक्षित स्वच्छ वार्ड का अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए समिति के सदस्य स्थानीय पालिका के स्टाफ, ट्रैफिक पुलिस, रहवासियों के साथ-साथ क्षेत्र के निर्वाचित पार्षदों से मिलकर काम करते हैं। दिलचस्प यह है कि उनका अलिखित अभियान वाक्य है, 'समस्याएं सुलझाने के लिए हर संबंधित व्यक्ति संस्था के पीछे पड़े रहें लेकिन, विनम्रता बनाए रखें।' और यह भी कि जितना मुमकिन हो अगली पीढ़ी को वैसा ही शहर सौंपे जैसा पहले की पीढ़ी ने सौंपा था। यह समूह सेमिनार और वर्कशॉप के माध्यम से कम्पोस्टिंग और कचरे को अलग करने की प्रक्रिया पर जागरूकता फैलाता है। वे हमेशा अधिकारियों के साथ अपने काम को अगले स्तर पर ले जाते हैं। इसके अलावा आवारा पशुओं को भी नियंत्रित तरीके से बढ़ने देते हैं। संक्षेप में कहें तो वे जो कर रहे हैं वह प्राकृतिक पर्यावरण को बने रहने देना है। वे किसी को इतिहास के साथ छेड़छाड़ नहीं करने देते हैं और आखिर में बहुत ही महत्वपूर्ण कृषि संबंधी विविधता को संरक्षण दे रहे हैं। 

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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