Tuesday, December 5, 2017

28 साल सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट बताएगा अयोध्या का मालिक कौन, नियमित सुनवाई आज से

साभार: जागरण समाचार 
भगवान के घर देर है या अंधेर यह तो इंसान को पता नहीं चल पाया है, लेकिन इंसानी अदालत में कितनी देर लगती है यह भगवान को जरूर पता चल गया होगा। हम बात कर रहे हैं अयोध्या के राम जन्मभूमि मामले की,
जो सात साल से सुप्रीम कोर्ट में अटका हुआ है। लेकिन, अब पांच दिसंबर से मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्र, अशोक भूषण और अब्दुल नजीर की पीठ इस पर नियमित सुनवाई शुरू करेगी। 
कोर्ट के सामने यह है कि क्या विवादित ढांचा किसी हिन्दू ढांचे को तोड़ कर बनाई गई थी? 28 साल सुनवाई के बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दो एक के बहुमत से 30 सितंबर, 2010 को जमीन को तीन बराबर हिस्सों रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड में बांटने का फैसला सुनाया था। भगवान रामलला को वही हिस्सा दिया गया, जहां वे विराजमान हैं। हालांकि, हाई कोर्ट का फैसला किसी पक्षकार को मंजूर नहीं हुआ और सभी 13 पक्षकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए। सुप्रीम कोर्ट ने मई 2011 को अपीलों को विचारार्थ स्वीकार किया था।
  • इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को सभी पक्षों ने दी है चुनौती
  • हाई कोर्ट ने जमीन को तीन हिस्सों में बांटने का दिया था आदेश
  • श्रीरामलला विराजमान और हिन्दू महासभा आदि ने दलील दी है कि हाई कोर्ट ने भी रामलला विराजमान को संपत्ति का मालिक बताया है।
  • वहां पर हिन्दू मंदिर था और उसे तोड़कर विवादित ढांचा बनाया गया था। ऐसे में हाई कोर्ट एक तिहाई जमीन मुसलमानों को नहीं दे सकता है।
  • यहां न जाने कब से हिन्दू पूजा-अर्चना करते चले आ रहे हैं, तो फिर हाई कोर्ट उस जमीन का बंटवारा कैसे कर सकता है?
विवादित ढांचे के नीचे हैं मंदिर के साक्ष्य: विवादित ढांचे के नीचे हिन्दू मंदिर होने के साक्ष्य मिले हैं। 30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के तीन में से दो न्यायाधीशों जस्टिस सुधीर अग्रवाल और धर्मवीर शर्मा ने अपने फैसले में माना कि अयोध्या में विवादित ढांचा हिन्दू मंदिर तोड़ कर बनाया गया था। दोनों जजों के फैसले का आधार भारत पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) की रिपोर्ट है। एएसआइ की रिपोर्ट कहती है कि विवादित ढांचे के नीचे हिन्दू मंदिर था। मस्जिद बनाने में मंदिर के अवशेषों का इस्तेमाल हुआ था। हालांकि, तीसरे न्यायाधीश एसयू खान के अनुसार, इस बात का कोई सुबूत नहीं मिलता कि बाबर ने मस्जिद किसी मंदिर को तोड़ कर बनाई थी। उन्होंने ये जरूर माना कि मस्जिद का निर्माण बहुत पहले नष्ट हो चुके मंदिर के अवशेषों पर हुआ था।
मुस्लिम संगठनों की दलील: सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और अन्य मुस्लिम पक्षकारों का कहना है कि बाबर के आदेश पर मीर बाकी ने अयोध्या में 528 में 1500 वर्गगज जमीन पर मस्जिद बनवाई थी। इसे बाबरी मस्जिद के नाम से जाना जाता है। मस्जिद वक्फ की संपत्ति है और मुसलमान वहां नमाज पढ़ते रहे। 22 और 23 दिसंबर 1949 की रात हिन्दूओं ने केंद्रीय गुंबद के नीचे मूर्तियां रख दीं और मुसलमानों को वहां से बेदखल कर दिया।