Wednesday, December 6, 2017

सुप्रीम कोर्ट में नहीं चली अयोध्या पर राजनीति; आम चुनाव के बाद सुनवाई की मांग खारिज

साभार: जागरण समाचार 
अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद पर सुनवाई के दौरान मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में जोरदार हंगामा हुआ। सर्वोच्च अदालत में राजनीति का सुप्रीम मंजर दिखा। मुस्लिम पक्षकारों ने केस तैयार न होने के आधार पर
सुनवाई का पुरजोर विरोध किया। मामले के राजनैतिक असर का हवाला देते हुए कहा कि यह सुनवाई का उचित समय नहीं है। आखिर इतनी जल्दबाजी क्या है? सुनवाई आम चुनाव के बाद जुलाई 2019 में होनी चाहिए। उनके वकीलों ने यहां तक विरोध किया कि अगर कोर्ट सुनवाई जारी रखेगा तो वे उसमें हिस्सा नहीं लेंगे और अदालत कक्ष छोड़ कर चले जाएंगे। करीब दो घंटे तक शोरशराबा और बहस चलने के बाद कोर्ट ने सुनवाई टाल दी और दस्तावेजों का आदान प्रदान पूरा होने के बाद मामला आठ फरवरी को फिर लगाने का आदेश दिया है। कोर्ट ने 11 अगस्त को अयोध्या मामले में अपीलों पर नियमित सुनवाई के लिए पांच दिसंबर की तिथि तय करते हुए कहा था कि दस्तावेजों का आदान-प्रदान पूरा कर लिया जाए। 
सिब्बल की राजनीतिक दलील: मंगलवार को कोर्ट में धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिक सौहार्द का मुलम्मा चढ़ा कर राजनीतिक और धार्मिक आस्था को बढ़ावा देने वाली दलीलें दी गईं। कानूनी दांवपेच पीछे थे, मुकदमे की सुनवाई के राजनीतिक नफा- नुकसान के आंकड़े आगे। मुस्लिम पक्षकारों की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल, राजीव धवन और दुष्यंत दवे ने सुनवाई रोकने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाया।
हजारों दस्तावेजों को पढ़ना होगा: हालांकि उत्तर प्रदेश की ओर से पेश एएसजी तुषार मेहता ने इसका विरोध करते हुए कहा कि सारे अनुवाद और दस्तावेज दाखिल हो गए हैं। सुनवाई रोकने के लिए ऐसी दलीलें नहीं दी जा सकती। सिब्बल ने विरोध जारी रखते हुए कहा ऐसे सुनवाई नहीं हो सकती। उन्हें हजारों दस्तावेज पढ़ने हैं उसके लिए चार महीने का समय मिलना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस केस का बहुत ज्यादा राजनैतिक असर है, इसलिए कोर्ट को इस पर 15 जुलाई 2019 से सुनवाई शुरू करनी चाहिए। यानी तब तक देश में आम चुनाव खत्म हो जाएगा।
केस जमीन का, हो रही राजनीति: तुषार मेहता ने ऐसी दलीलों का विरोध करते हुए कहा कि यहां केस का राजनीतिक रूप दिया जा रहा है। रामलला के वकील सीएस वैद्यनाथन और हंिदूू पक्ष के वकील हरीश साल्वे का भी कहना था कि दूसरा पक्षकार कोर्ट में राजनैतिक भाषण दे रहा है। साल्वे ने कहा कि कोर्ट को यह नहीं बताया जा सकता कि उसकी सुनवाई का क्या राजनैतिक असर होगा। यह जमीन पर हक का मुकदमा है और अन्य मामलों की तरह ही सुना जाना चाहिए।
सात साल की देरी से क्या सुनवाई होनी ही नहीं चाहिए: धवन ने मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र से कहा कि आपके कार्यकाल यानी अक्टूबर 2018 तक सुनवाई पूरी नहीं हो पाएगी। इस दलील पर ऐतराज जताते हुए जस्टिस भूषण ने कहा कि यह कैसी बात है। हाई कोर्ट में 90 दिन में बहस पूरी हो सकती है और यहां अपील पर साल भर में भी सुनवाई नहीं हो पायेगी? सिब्बल ने कहा, न्याय होना ही जरूरी नहीं है बल्कि न्याय होते दिखना भी चाहिए। आखिर इस पर सुनवाई की इतनी जल्दी क्यों है? सात साल से सुनवाई नहीं हुई तो अचानक केस कैसे लग गया? इस पर कोर्ट ने कहा कि सात साल सुनवाई नहीं हुई तो क्या कभी शुरू नहीं होनी चाहिए? कोर्ट ने सुनवाई जारी रहने पर कोर्ट छोड़ कर जाने की वकीलों की धमकी पर ऐतराज जताया और आदेश में इसे अचरज संग दर्ज भी किया।
3 जजों की पीठ कर रही सुनवाई:
  • मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र: सुना चुके हैं राष्ट्रगान के समय खड़े होने जैसे फैसले।
  • न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर: तीन तलाक वाली पीठ में भी थे। प्रथा में दखल को गलत ठहराया था। 
  • न्यायमूर्ति अशोक भूषण: कर रहे हैं दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच जारी अधिकारों की जंग की सुनवाई।