Saturday, February 3, 2018

बोफोर्स मामले में 13 साल बाद सुप्रीम कोर्ट पहुंची CBI

साभार: जागरण समाचार 
केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआइ) ने बोफोर्स मामले में दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए 13 साल बाद सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। जांच एजेंसी ने शुक्रवार को दायर याचिका में 2005 के हाई कोर्ट
के आदेश को चुनौती दी है। हाई कोर्ट ने राजनीतिक रूप से संवेदनशील 64 करोड़ के इस रिश्वत मामले में आरोपियों के खिलाफ सारे आरोप निरस्त कर दिए थे। सीबीआइ का सुप्रीम कोर्ट में अपील करना इस मायने में बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि कुछ ही दिन पहले अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने ऐसा नहीं करने की सलाह दी थी। उनका कहना था कि मामला लगभग 13 साल पुराना हो चुका है। इतनी देरी से विशेष अनुमति याचिका दायर करने से यह खारिज हो सकती है। लेकिन सूत्रों ने बताया कि विचार-विमर्श के बाद उन्होंने मौखिक रूप से अपील दायर करने की सहमति दे दी, क्योंकि सीबीआइ ने कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज और साक्ष्य उनके सामने रखे हैं। 
31 मई, 2005 को दिल्ली हाई कोर्ट के तत्कालीन जस्टिस आरएस सोढ़ी ने यूरोप में रह रहे उद्योगपति हिंदुजा बंधुओं और बोफोर्स कंपनी के खिलाफ सारे आरोप निरस्त कर दिए थे।
भाजपा नेता ने दी थी चुनौती: भाजपा नेता अजय अग्रवाल ने बोफोर्स मामले में सभी आरोपियों को बरी करने के हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे रखी है। सर्वोच्च अदालत ने 18 अक्टूबर, 2005 को उनकी याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार किया था। सीबीआइ द्वारा हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील नहीं किए जाने के बाद उन्होंने याचिका दायर की थी। अग्रवाल ने कहा था कि उन्होंने जनहित में अपील दायर की है। अग्रवाल की याचिका पर सुनवाई के दौरान तत्कालीन अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल मनिंदर सिंह ने कहा था कि सीबीआइ को हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती नहीं देने की सलाह दी गई थी।
यह है बोफोर्स मामला: चार सौ 155 मिमी होवित्जर तोपों की खरीद के लिए 24 मार्च, 1986 को भारत और स्वीडन की हथियार कंपनी एबी बोफोर्स के बीच करार हुआ। यह 1,437 करोड़ रुपये का करार था। 1987 को स्वीडिश रेडियो ने दावा किया कि बोफोर्स ने भारतीय नेताओं और रक्षा कर्मियों को रिश्वत दी है। इसके बाद भारत में यह बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया। माना जाता है कि 1989 के चुनाव में राजीव गांधी की हार इसी मामले के चलते हुई। सीबीआइ का कहना था कि 1982 से 87 के बीच भारत और विदेश में कुछ लोकसेवकों व निजी लोगों ने भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी और जालसाजी की।